नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना के बाढ़ क्षेत्र में डीडीए की जमीन पर बसे अवैध झुग्गी-बस्तियों को हटाने की अनुमति दी है। कोर्ट ने डीडीए की पुनर्वास नीति के तहत इन बस्तियों को वैकल्पिक जगह पर बसाने के दावे को ठुकरा दिया है। डूसिब शेल्टर में आश्रय का विकल्प जस्टिस मिनी पुष्करणा ने […]
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना के बाढ़ क्षेत्र में डीडीए की जमीन पर बसे अवैध झुग्गी-बस्तियों को हटाने की अनुमति दी है। कोर्ट ने डीडीए की पुनर्वास नीति के तहत इन बस्तियों को वैकल्पिक जगह पर बसाने के दावे को ठुकरा दिया है।
जस्टिस मिनी पुष्करणा ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता चाहें तो डूसिब के शेल्टर में अस्थायी रूप से रह सकते हैं, ताकि वे वैकल्पिक जगह का इंतजाम कर सकें। उन्हें ‘मुख्यमंत्री आवास योजना’ और ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत पुनर्वास के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई है।
हाई कोर्ट ने यमुना खादर स्लम यूनियन समेत चार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। याचिकाओं में डीडीए को यमुना के बाढ़ क्षेत्र में स्थित अस्थाई निर्माणों और झुग्गियों को तोड़ने से रोकने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता चाहते थे कि हाई कोर्ट डीडीए को उन इलाकों का सर्वे कराने और इन्हें पुनर्वासित करने का निर्देश दे।
बेहलोपुर, खादर ग्यासपुर और अन्य क्षेत्रों की बस्तियों ने दावा किया कि वे 1990 से यहां बसे हुए हैं। हाई कोर्ट ने माना कि इन बस्तियों के निवासियों का पुनर्वास का हक नहीं बनता है।
हाई कोर्ट ने डीडीए के दावों को सही पाया और गौर किया कि याचिकाकर्ता नदी किनारे व्यावसायिक और खेती-बाड़ी के साथ पशुओं को चराने का काम कर रहे हैं। अतिक्रमण से नदी की आकृति और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। डीडीए ने साबित किया कि अतिक्रमण की दूरी नदी से केवल 600 मीटर है और वे डूसिब की पुनर्वास सूची में नहीं आती हैं।
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