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देवबंद उलेमाओं का फतवा- गैर मर्दों से मुस्लिम महिलाएं न पहनें चूड़ियां, ये नाजायज और गुनाह

दारुल उलूम देवबंद ने एक और अजीबोगरीब फतवा जारी करते हुए कहा है कि मुस्लिम महिलाओं का गैर मर्दों से चूड़ियां पहनना शरीयत के खिलाफ है और यह नाजायज और गुनाह है. इस बारे में दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से एक सवाल किया गया था, जिसके जवाब में उलेमाओं ने इसे नाजायज और गुनाह बताते हुए फतवा जारी कर दिया.

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Muslim Women Fatwa
  • February 11, 2018 1:09 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

सहारनपुरः दारुल उलूम देवबंद ने मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा एक और अजीबोगरीब फतवा जारी किया है. इंडिया टुडे ग्रुप की खबर के मुताबिक, महिलाओं के लिए जारी किए गए इस फतवे में कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं का बाजार में या कहीं भी गैर-महरम मर्दों (पराये मर्दों) से चूड़ियां पहनना सरासर गलत है. दरअसल इस बारे में दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से एक सवाल किया गया था, जिसके जवाब में उलेमाओं ने इसे नाजायज और गुनाह बताते हुए फतवा जारी कर दिया.

मिली जानकारी के अनुसार, देवबंद के रहने वाले एक शख्स ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से लिखित में सवाल पूछा था कि हमारे यहां चूड़ियां बेचने और पहनाने का काम पुरुष करते हैं. चूड़ियां खरीदने या पहनने के लिए औरतों को घरों से बाहर निकलकर बाजार जाना पड़ता है और गैर मर्दों के हाथों में अपने हाथ देने पड़ते हैं. क्या इस तरह मुस्लिम औरतों का गैर मर्दों से चूड़ी पहनना जायज है? जिसके जवाब में दारुल उलूम देवबंद के उलेमाओं ने इसे गलत बताते हुए कहा कि मुस्लिम महिलाओं का पराये मर्दों से चूड़ी पहनना नाजायज और गुनाह है.

जिन मर्दों से औरत का खून का रिश्ता न हो, ऐसे मर्दों के हाथों से चूड़ी पहनने के लिए घर से बाहर निकलना सख्त मना है. देवबंद की ओर से जारी किए इस फतवे में इसे गुनाह बताया गया है. दारुल इफ्ता ने यह कहते हुए फतवा जारी किया है कि इस्लामी शरीयत के मुताबिक, किसी मुस्लिम महिला को हर उस मर्द से पर्दा करना होता है, जिससे उसका खून का रिश्ता न हो. फतवे में यह भी कहा गया है कि चूड़ियां पहनना गलत नहीं है लेकिन वह किसी पराये मर्दे के हाथों से न पहनी जाए. मुस्लिम महिलाएं बाजार से चूड़ियां मंगाएं और उन्हें खुद पहनें. बताते चलें कि दो दिन पहले दारुल उलूम देवबंद के उलेमाओं ने एक और फतवा जारी करते हुए कहा था कि जीवन बीमा पॉलिसी कराना या संपत्ति का बीमा कराना गैर इस्लामिक है. जान-माल और संपत्ति का बीमा करना और कराना दोनों ही इस्लाम के खिलाफ हैं. फतवे के मुताबिक बीमा से मिलने वाला लाभ सूद (ब्याज) की श्रेणी में आता है इसलिए यह नाजायज है.

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