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दलित बनेगा बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष, नेताओं की धड़कनें हुई तेज, जानिए कौन बनेगा बाजीगर

भगवा पार्टी में संगठन चुनाव चल रहा है और नीचे से ऊपर तक तब्दीली हो रही है इसलिए भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे उपयुक्त अध्यक्ष दलित जाति से आने वाला कोई व्यक्ति हो सकता है. कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव से काफी पहले ही मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ दलित नेता को पार्टी अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर अपना संदेश दे दिया था. कांग्रेस की ये रणनीति एक हद तक कारगर भी रही.

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Dalit will become the national president of BJP, the heartbeats of the leaders increased, know who will become the juggler.
  • December 25, 2024 8:32 pm Asia/KolkataIST, Updated 12 hours ago

नई दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संसद में बाबा साहेब अंबेडकर पर दिये बयान के बाद कांग्रेस और पूरे विपक्ष ने इस मुद्दे को लपक लिया है. दिल्ली चुनाव के ऐन मौके पर हुए इस विवाद से भाजपा बुरी तरह घिर गई है. विपक्ष अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर वार कर रहा है. भाजपा भी पलटवार कर रही है लेकिन बैकफुट पर दिख रही है. ऐसे में खबर आ रही है भाजपा विपक्ष के वार को भोथरा करने के लिए किसी दलित को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकती है.

विपक्ष सोचना बंद कर देता है

कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए इस संकट से निकलने का सबसे बड़ा कदम किसी दलित नेता को पार्टी अध्यक्ष पद पर नियुक्त करना हो सकता है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी की राजनीति वहां से शुरू होती है जहां विपक्ष सोचना बंद कर देता है. चूंकि भगवा पार्टी में संगठन चुनाव चल रहा है और नीचे से ऊपर तक तब्दीली हो रही है इसलिए भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे उपयुक्त अध्यक्ष दलित जाति से आने वाला कोई व्यक्ति हो सकता है. कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव से काफी पहले ही मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ दलित नेता को पार्टी अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर अपना संदेश दे दिया था. कांग्रेस की ये रणनीति एक हद तक कारगर भी रही.

पक्ष में जाते दिखे हैं

कर्नाटक विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में दलित वोट सीधे तौर पर पार्टी के पक्ष में जाते दिखे हैं. जबकि पिछले कई चुनावों से दलित वोट कट्टर दलित राजनीति करने वाली पार्टियों और बीजेपी के बीच बंट रहा था. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर से लेकर दक्षिण तक के राज्यों में दलित वोटों का भरपूर समर्थन मिला. कांग्रेस के इस कार्ड का मुकाबला करने के लिए भारतीय जनता पार्टी को भी कुछ ऐसा ही करना होगा. जाहिर है कि अगर देश के राष्ट्रपति का पद बीजेपी ने किसी आदिवासी महिला को दिया है तो पार्टी अध्यक्ष का पद भी किसी दलित नेता या दलित महिला को दे सकती है.

ग्राफ तेजी से गिरा

पिछले 10 वर्षों में संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों में ऊंची जातियों का प्रतिशत दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है। खासकर ब्राह्मणों का ग्राफ सबसे तेजी से गिरा जिसे ठीक करने के लिए राजस्थान का मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस को बनाया गया. हरियाणा से राज्यसभा गईं रेखा रानी शर्मा को भी इसी कड़ी में जोड़ा जा रहा है।

राष्ट्रपति पद तक पहुंचा है

चाहे राजस्थान हो या महाराष्ट्र हो या हो हरियाणा, इन सभी जगहों पर ब्राह्मणों की संख्या बेहद कम है। फिर भी पार्टी ने ब्राह्मणों को संवैधानिक पद दिया. इसी बीच ये विवाद हो गया लिहाजा पार्टी मंथन कर रही है कि किसी दलित को पार्टी अध्यक्ष बनाकर इस मुद्दे को खत्म कर दिया जाए. भारतीय जनता पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासियों के बीच इसे खूब प्रचारित किया और विरोध करने वाले विपक्ष को भी खूब खऱी खोटी सुनाई.

संगठनात्मक अनुभव भी हो

ऐसे बहुत कम लोग हैं जो आरएसएस का समर्थन करते हैं और उनके पास मजबूत संगठनात्मक अनुभव भी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, संभावित उम्मीदवारों में जिन दलित नेताओं के नाम पर विचार किया जा रहा है, उनमें केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, बीजेपी महासचिव दुष्यंत गौतम और उत्तर प्रदेश सरकार की मंत्री बेबी रानी मौर्य शामिल हैं. अर्जुन राम मेघवाल अपनी शिक्षा और मोदी सरकार में अहम जिम्मेदारियों की वजह से इस रेस में सबसे आगे हो सकते हैं. बेबी रानी मौर्य के नाम की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ साल पहले उन्हें जिस तरह से उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफा दिलाकर यूपी में ले आया गया. वह चुनाव लड़ीं और जीतकर मंत्री बनीं.

बड़े पद दिए जाते हैं

वहीं जैसा कि इतिहास से पता चलता है, यह असंभव नहीं है कि कोई ऐसा चेहरा सामने आए जिसे कोई जानता भी न हो। मोदी जी की पिछली पसंदों को देखते हुए, वह एक लो-प्रोफ़ाइल और भरोसेमंद नेता भी हो सकता है। बीजेपी हो या कांग्रेस, हर पार्टी में दलित नेताओं को बड़े पद तो दिए जाते हैं लेकिन उनका रिमोट पार्टी के दूसरे बड़े नेताओं के हाथ में रहता है.

कांग्रेस में दलित अध्यक्ष के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे की ताजपोशी हो चुकी है, लेकिन अध्यक्ष पद पर उन्हें कितनी ताकत मिली हुई है ये सभी जानते हैं. उन्हें न तो किसी को नियुक्त करने का अधिकार है और न ही किसी को बर्खास्त करने का. वह गांधी परिवार से सलाह किए बिना एक भी कदम नहीं उठा सकते. बीजेपी भी इस मामले अलग नहीं है. कोई नहीं चाहता कि ऐसा व्यक्ति महत्वपूर्ण पद पर आसीन हो जो अपने फैसले खुद लेना शुरू कर दे।

 

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