नई दिल्ली. देश के समक्ष दो खबरें एक साथ सामने आईं. पहली खबर थी मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले की जहां कुछ असामाजिक तत्वों ने खुले में शौच कर रहे दो दलित बच्चों की पीट-पीटकर हत्या कर दी. दूसरी खबर यह आई कि आगामी 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के गांधीनगर में स्थित साबरमती रिवरफ्रंड पर आयोजित होने वाले एक भव्य समारोह में देश को ‘खुले में शौच’ से मुक्त घोषित करेंगे. इन दोनों खबरों की कहानी को समझने के लिए हमें इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि खुले में शौच की मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मौत का पैगाम बन गई है या फिर वाकई में इससे मुक्ति की राह प्रशस्त हुई है जिसे मोदी जी 2 अक्टूबर को दुनिया को बताने जा रहे हैं.
दरअसल, महात्मा गांधी का जीवन में स्वच्छता पर बड़ा जोर रहता था. आजादी के बाद देश की तमाम सरकारों ने समय-समय पर अपने-अपने तरीके से स्वच्छ भारत अभियान को लेकर काम किया. थोड़ा पीछे की तरफ देखें तो आधिकारिक रूप से 1 अप्रैल 1999 को भारत सरकार ने व्यापक ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का पुनर्गठन किया था और पूर्ण स्वच्छता अभियान की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाया जिसे बाद में 1 अप्रैल 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने निर्मल भारत अभियान का नाम दिया गया. लेकिन जब 2014 में सत्ता बदली और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इसे नए रंग और रूप में स्वच्छ भारत अभियान के नाम से पेश किया और 24 सितंबर 2014 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी से निर्मल भारत अभियान का पुनर्गठन किया.
इस अभियान को 2 अक्टूबर 2014 को शुरू किया गया और इस बात का प्रण लिया गया कि स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को जड़ से मिटाना है. इसकी एक डेडलाइन तय की गई जिसके तहत सरकार ने 2 अक्टूबर 2019 तक ग्रामीण भारत में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण कर खुले में शौच मुक्त भारत (ओडीएफ) को हासिल करने का लक्ष्य रखा गया.
अब जब वो विशेष दिन आने वाला है जब धूम धड़ाके से इस बात की घोषणा की जाएगी कि देश खुले में शौच से मुक्त हो गया है तो इसी बीच 25 सितंबर बुधवार को मध्यप्रदेश के शिवपुरी से एक दर्दनाक खबर आई कि खुले में शौच कर रहे दो बच्चों की कुछ लोगों ने पीट-पीट कर हत्या कर दी. निश्चित रूप से यह खबर खुले में शौच से मुक्ति के आगामी आयोजन पर सवाल खड़े करती है. यह खबर इस बात को मानने के लिए बाध्य करती है कि अभी भी देश में बहुत सारे ऐसे गांव हैं जहां लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. शिवपुरी में सिरसौद थाना क्षेत्र के भावखेड़ी गांव का में जिन बच्चों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई क्या वे बच्चे शौक से खुले में शौच करने गए थे?
इस बीच देश के तमाम राज्यों में इस बात की होड़ मची है कि किस तरह से खुले में शौच मुक्त राज्यों की सूची में शामिल हुआ जाए. उत्तराखंड और हरियाणा देश के चौथे और पांचवे नंबर के राज्य बन गए हैं जहां खुले में शौच समाप्त होने का दावा किया जा रहा है. इन राज्यों से पहले सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और केरल खुले में शौच मुक्त राज्यों की श्रेणी में खुद को शामिल कर चुके हैं.
लेकिन जब खुले में शौच से कौन राज्य कितना मुक्त हुआ है इसपर बात करेंगे तो सबकी पोल खुलकर सामने आ जाती है. एकमात्र राज्य सिक्किम ने 100 फीसदी का दावा किया है. बाकी हिमाचल प्रदेश (55.95 फीसदी), हरियाणा (41), मेघालय (41), गुजरात (37.58 फीसदी), महाराष्ट्र (28.33), छत्तीसगढ़ (24.91), राजस्थान (23.83), और केरल (19.92) का दावा किया है.
निश्चित रूप से इस बात को मानने पर कोई विवाद नहीं है कि सरकार ने जो लक्ष्य तय किए थे कि हम 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौंच मुक्त (ओडीएफ) भारत को हासिल कर लेंगे, पूरा कर लिया गया हो. लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह कितना सफल हो पाया है इसकी समीक्षा कौन करेगा? हम मान लेते हैं कि शौचालय बन गया लेकिन यह सुनिश्चित कौन करेगा कि वह ऑपरेशन में है भी या नहीं? क्या उन शौचालयों में पानी की सुविधा है भी या नहीं? ऐसे तमाम तथ्य हैं जिनको बिना देखे-समझे हम इस बात का जश्न कैसे मना सकते हैं कि भारत खुले में शौच से मुक्त हो चुका है.
(लेखक पिछले दो दशक से अधिक समय से प्रिंट और डिजिटल पत्रकारिता से जुड़े हैं और वर्तमान में आईटीवी डिजिटल नेटवर्क में कंसल्टिंग एडिटर के पद पर कार्यरत हैं)
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