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क्या राजनीति और खबरों की भूख आपको दिमागी तौर पर कमज़ोर कर सकती है?

नई दिल्ली: समाचारों और राजनीतिक जागरूकता से लगातार अपडेट रहना किसी भी आम आदमी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। यह जानकारी हाल ही में हुए एक अध्ययन से प्राप्त हुई है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि विभिन्न समाचार स्रोतों की तुलना में समाचार कवरेज का प्रभाव अधिक होता है। यह सीधे हमारे अवचेतन मन को प्रभावित करता है और आश्चर्यजनक तरीकों से हमारे जीवन में हस्तक्षेप कर सकता है।

 

➨ दिमाग पर खबरों का असर

इसकी वजह से हम चीजों को गलत समझ सकते हैं। दूसरे देशों के बारे में हमारी राय बदल सकती है और इससे हमारे स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसकी वजह से पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस, एंग्जाइटी और डिप्रेशन भी बढ़ सकता है। नए शोध में यह भी पाया गया है कि इससे हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है।

 

➨ पहले कुछ बुनियादी लेकिन जरूरी बातें

किसी ने एक बार कहा था कि अगर खबरों को तुरंत खत्म करना है तो अगले ही पल कुछ नया ईजाद करना होगा। यह अच्छी तरह से हमारे जैसे सामाजिक प्राणियों के लिए नवीनता की आवश्यकता की व्याख्या करता है।

 

➨ खबर का शाब्दिक अर्थ

समाचार का शाब्दिक अर्थ कुछ नया होता है। (Something new is NEWS.) हमारे आसपास क्या हो रहा है यह जानने की इच्छा समाचार से संतुष्ट होती है। छोटे, स्थानीय, बुलेटेड और बोल्ड समाचारों से शुरू होकर, समाचारों की प्रकृति आज पूरी तरह से बदल गई है और अब इसे “मीडिया” कहा जाता है।

 

➨ समाचार में बदलाव

न सिर्फ खबरें बदली हैं, बल्कि समय के साथ-साथ खबरों की तकनीक और नैतिकता भी बदली है। इस कारण से, समाचार और मीडिया ने अपने उपयोगकर्ताओं के साथ एक ऐसा रिश्ता विकसित कर लिया है, जिसकी कल्पना शुरुआत करने वालों ने भी नहीं की होगी।

 

➨ खबर का नकारात्मक असर

आज के प्रतिस्पर्धी युग में, समाचार केवल सूचना के स्रोत से कहीं अधिक है। आज का समाचार लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बनाया गया है और इसमें ज्योतिषीय भविष्यवाणियों से लेकर सनसनीखेज स्वास्थ्य संबंधी दावों तक सब कुछ शामिल है। आवश्यक जानकारी के साथ-साथ ऑनलाइन उपलब्ध समाचारों की बाढ़ ने प्रबंधन के लिए एक अधिभार पैदा कर दिया है। लोगों के लिए मुश्किल हो गई है। सूचनाओं की निरंतर बमबारी हमारे सोचने और महसूस करने के तरीके को प्रभावित करती है, बिना हमें पता चले।

 

 

➨ क्या समाचार चिंता का कारण बनता है?

अध्ययन बताते हैं कि इससे अवसाद और चिंता हो सकती है। यह भी तथ्य है कि इंटरनेट युग में पैदा हुए और पले-बढ़े लोग ऑनलाइन उपलब्ध जानकारी को निर्विवाद मानते हैं जो एक ऐसी दुनिया बनाता है जहाँ लोगों के दृष्टिकोणों के बीच बहुत अधिक संघर्ष होता है। साथ ही यह बहुत ही खौफनाक माहौल पैदा करता है। इससे भावनात्मक संकट और डिप्रेशन जैसी दिक्कत भी हो सकती है।

 

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Amisha Singh

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