Corona Vaccination : मेक इन इंडिया और स्वदेशी वैक्सीन के नाम पर मोटी कमाई कर रहा सीरम इंस्टीट्यूट, कोविड शील्ड की लागत और कीमत जानकर रह जाएंगे दंग

Corona Vaccination :  कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने देश में भारी तबाही मचाई। हर रोज काफी संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं। आंकड़ों में गिरावट के बावजूद भी प्रतिदिन 4 हजार से ज्यादा मौतें हो रही हैं। ऐसे में देश की नजर टीके पर है। लेकिन हाल ही में जिस तरह से टीके के दाम को लेकर विवाद हुआ उसने कई सवाल खड़े किए हैं।

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Corona Vaccination : मेक इन इंडिया और स्वदेशी वैक्सीन के नाम पर मोटी कमाई कर रहा सीरम इंस्टीट्यूट, कोविड शील्ड की लागत और कीमत जानकर रह जाएंगे दंग

Aanchal Pandey

  • May 17, 2021 11:50 am Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

नई दिल्ली. कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने देश में भारी तबाही मचाई। हर रोज काफी संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं। आंकड़ों में गिरावट के बावजूद भी प्रतिदिन 4 हजार से ज्यादा मौतें हो रही हैं। ऐसे में देश की नजर टीके पर है। लेकिन हाल ही में जिस तरह से टीके के दाम को लेकर विवाद हुआ उसने कई सवाल खड़े किए हैं।

इस विवाद की शुरुआत तब हुई थी जब कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने वैक्सीन के दाम अलग-अलग घोषित कर दिए। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक ने राज्यों की तुलना में केंद्र सरकार को कम दामों में वैक्सीन दिया। ऐसे में ये सवाल उठता है कि आखिर त्रासदी के इस दौर में क्या वाकई कीमतों में कटौती संभव नहीं थी। क्या केंद्र और राज्यों को अलग-अलग कीमत में देना मजबूरी थी या आपदा में अवसर तलाशा गया।

रिपोर्ट्स क्या कहती है

इसे समझने के लिए टीका बनाने वाली इन कंपनियों के राजस्व पर नजर डालना होगा। मिंट में छपी खबर के अनुसार कॉरपोरेट डेटाबेस कैप्टलाइन के मुताबिक साल 2019-20 में देश की 418 कंपनियों ने 5 हजार करोड़ से अधिक का राजस्व जारी किया है। जिसमें राजस्व के प्रत्येक रुपये पर मुनाफा कमाने वाली कंपनी सीरम इंटिट्यूट ऑफ इंडिया थी। सीरम ने पिछले साल 5446 करोड़ का माल बेचा जिसमे उसने 2251 करोड़ का शुद्ध मुनाफा कमाया। यानी आसान भाषा में कहा जाए तो सीरम इंस्टिट्यूट इस स्थिति में थी कि वो बहुत सस्ते दाम में वैक्सीन उपलब्ध करा सकती थी। जिसके बाद भी उसे मुनाफा होता।

तो क्या कम होता नुकसान

मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक जब कोरोना की त्रासदी आई तब सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया एक बेहतर स्थिति में थी कि वो भारत को वैक्सीन उपलब्ध करा सकती थी। क्योंकि ये डोज़ के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है।

अप्रैल 2020 में, सीरम ने ऑक्सफोर्ड की अस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर काम किया जिससे बाद में कोविशील्ड का निर्माण हुआ। सीरम के पास वित्तीय रूप से इतनी क्षमता थी कि वो काफी मात्रा में वैक्सीन का भंडारण कर सकती थी।

यानी अगर भारत सरकार और सीरम इंस्टिट्यूट ने वैक्सीन बनाने की ओर समय रहते ध्यान दिया होता तो शायद जो तस्वीर आज दिख रही है वो इसके बरअक्स होती। बाकी देशों की तरह भारत सरकार ने इसके लिए कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। सीरम भी इसी इंतेज़ार में रहा कि सरकार की ओर से फंड जारी किया जाए। जबकि वह त्रासदी में खुद ही पहल करने की स्थिति में था। यानी भारत सरकार और वैक्सीन निर्माता सीरम अगर चाहते तो वक़्त रहते बड़ी मात्रा में वैक्सीन का निर्माण कर सकते थे, जिससे इतने बड़े स्तर पर हुई तबाही को कम किया जा सकता था।

इन सब विकल्पों के बजाय अब जब वैक्सीन लोगों तक पहुंच भी गई है फिर भी विवाद जारी है। पहले तो उसकी कीमतों को लेकर बहस हुई, मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। क्योंकि इस आपदा के वक़्त में भी वैक्सीन के दाम काफी बढ़ाए गए। जबकि अगर सीरम एक वैक्सीन के दाम 150 रुपये भी रखती तब भी वो फायदे में ही रहती।

अब जब राज्य तेजी से वैक्सीनेशन की ओर लगे हुए हैं तब देश में वैक्सीन की भारी किल्लत हो गई है। इतनी ज्यादा कमी कि दिल्ली हाईकोर्ट को सरकार से कहना पड़ा कि आप वैक्सीन लगवाने की रिंगटोन को बंद करिए। अगर आपके पास वैक्सीन नहीं है तो आप वैक्सीन लगवाने का ढिढोरा क्यों पीट रहे हैं। आप बताइए कि लोग वैक्सीन कहां लगवाएं।

क्या हुआ मेक इन इंडिया का हाल

सरकार में आते ही पीएम नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया का जोर शोर से प्रचार किया। करोड़ों रुपये पानी की तरह फूंक दिए गए। सरकार ने जिस सीरम इंस्टीट्यूट को वैक्सीन बनाने के लिए आर्थिक सहायता दी वो आज मोटा मुनाफा कमा रही है। मिंट की ख़बर के मुताबिक कोविड शील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट अगर 100 रूपये का सामान बेचती है तो उसमें 41 रूपये शुद्ध मुनाफा कमाती है। कंपनी इतना भारी मुनाफा कमा रही है जितना अंबानी-अडानी भी नहीं कमाते। अब जनता मजबूर है और मजबूरी का फायदा उठाना देश के कॉर्पोरेट्स को खूब आता है।

यानी जिस मेक इन इंडिया का फायदा देश की जनता को मिलना चाहिए था वो बड़ी-बड़ी कंपनियों ने भुनाया। हैरानी की बात तो ये भी है कि वैक्सीन कंपनियों की ओर से मनमाने दाम लगाने के बावजूद केंद्र सरकार ने इसपर कोई कदम नहीं उठाया। केंद्र को सस्ती और राज्यों को महंगी वैक्सीन बेचने पर केंद्र सरकार की सहमति क्यों रही। क्यों नौबत यहां तक आ गई कि राज्यों को इसका विरोध करना पड़ा और कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना पड़ा। ये सारे सवाल हैं जिनका जवाब ढूढा जाना चाहिए।

इन सब के बीच भले ही सीरम इस मौके को भुनाने में कामयाब न रहा हो फिर भी अभी उसके पास एक मौका और है कि वो बड़े स्तर पर वैक्सीन निर्माण करके एक बेहतर काम कर सकता है और आने वाले समय में और बड़ी तबाही को रोका जा सकता है.

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