नई दिल्ली। देश की सत्ता से लगभग बेदखल होने की कगार पर खड़ी कांग्रेस के सामने अब पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी साख बचाने की जंग करनी है। इस नए साल में त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में कांग्रेस के सामने स्थानीय पार्टियों से ज्यादा टीएमसी से निपटने की […]
नई दिल्ली। देश की सत्ता से लगभग बेदखल होने की कगार पर खड़ी कांग्रेस के सामने अब पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी साख बचाने की जंग करनी है। इस नए साल में त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में कांग्रेस के सामने स्थानीय पार्टियों से ज्यादा टीएमसी से निपटने की तैयारी करनी होगी। इस दौरान पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में टीएमसी अपने आप को ज्यादा से ज्यादा मज़बूत करने में लगी हुई है।
हम आपको बता दें कि टीएमसी को पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलने वाली चुनौती को लेकर कांग्रेस सीपीएम के साथ गठबंधन को लेकर विचार कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के मुताबिक सीपीएम के साथ-साथ कांग्रेस कई क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन का विचार बना कर बातचीत कर रही है। हम आपको बता दें कि, त्रिपुरा विधानसभा मे कांग्रेस का मात्र एक ही विधायक है, कुछ दिन पूर्व ही प्रदेश अध्यक्ष सहित कई कांग्रसी नेता टीएमसी में शामिल हो गए थे।
2018 के चुनाव में टीएमसी को मेघालय में किसी भी सीट पर जीत प्राप्त नहीं हुई थी। लेकिन कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक टूटकर टीएमसी में शामिल हो गए थे। हम आपको बता दें कि, टीएमसी सांसद सुष्मिता देव अपने पिता की विरासत के माध्यम से टीएमसी में अपनी जगह बना रहीं हैं। उनके पिता संतोष मोहन देव दो बार त्रिपुरा से जीतकर लोकसभा पुहंचे थे।