कांग्रेस में राहुल की सभा के 2 दिन बाद ही फूट, 36 साल में किसी आदिवासी को राज्यसभा नहीं भेजा

नई दिल्ली। कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा करने के लिए उदयपुर में चिंतन शिविर लिए गए फैसलों के तीन दिन बाद ही पार्टी में एक और विवाद खड़ा हो गया है। वहीं राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेताओं के बीच एक अंदरूनी झगड़ा खुलकर सामने आ गया है। कांग्रेस के जनजाति बाहुल्य जिलों के […]

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कांग्रेस में राहुल की सभा के 2 दिन बाद ही फूट, 36 साल में किसी आदिवासी को राज्यसभा नहीं भेजा

Mohmmed Suhail Mewati

  • May 20, 2022 11:29 am Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली। कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा करने के लिए उदयपुर में चिंतन शिविर लिए गए फैसलों के तीन दिन बाद ही पार्टी में एक और विवाद खड़ा हो गया है। वहीं राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेताओं के बीच एक अंदरूनी झगड़ा खुलकर सामने आ गया है। कांग्रेस के जनजाति बाहुल्य जिलों के विधायकों और राजनेताओं ने खुलकर नाराजगी जतानी शुरू कर दी है। जहां विवाद शुरु हुआ है, इस इलाके में ही चिंतन शिविर हुआ है और राहुल गांधी की सभा भी हुई है।

झगड़े का कारण

कांग्रेस में झगड़े की असली वजह जो है वो आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी के वर्चस्व की लड़ाई है। कांग्रेस के आदिवासी विधायक अब गैर-आदिवासी नेताओं के वर्चस्व से खफा हो गए हैं। इस लड़ाई में कांग्रेस विधायक रामलाल मीणा और गणेश घोघरा इस बात पर खुलकर विरोध में खड़े हुए है। इसी लड़ाई का कारण गणेश घोघरा के नाराज होकर इस्तीफा देने के पीछे बताया जा रहा है। बता दें की राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस में आदिवासी इलाके से राज्यसभा उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर भी लड़ाई हो रही है। कांग्रेस के आदिवासी नेता राज्यसभा के लिए दावेदारी कर रहे हैं।

कांग्रेस का एक भी नहीं, बीजेपी के दो नेता राज्यसभा सांसद

कांग्रेस का आदिवासी परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर जिलों से बीते 36 साल में कांग्रेस ने किसी भी आदिवासी को राज्यसभा नहीं भेजा। साल 1980 में धुलेश्वर मीणा को कांग्रेस ने खेरवाड़ा का राज्यसभा सांसद बनाया था। 1980 से कांग्रेस ने कोई भी आदिवासी नेता राज्यसभा सांसद नहीं बन पाया है। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी में मौजूदा समय में वागड़ क्षेत्र से दो राज्यसभा सांसद हैं। बीजेपी से राज्यसभा सांसद पूर्व मंत्री और आदिवासी नेता कनकमल कटारा हैं। वहीं, हर्षवर्धन सिंह भी डूंगरपुर से राज्यसभा सांसद हैं। बीजेपी से तुलना कर कांग्रेस के आदिवासी नेता अब राज्यसभा में भागीदारी मांग रहे हैं।

आदिवासी बहुल इलाके पर सियासत

राजस्थान के आदिवासी बहुल इलाके की सियासत का प्रभाव अब गुजरात और मध्यप्रदेश पर भी पड़ है। वागड़ से सटे मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासी बहुल इलाकों में 70 से ज्यादा सीटों पर आदिवासियों का वर्चस्व है। तीन राज्यों के ट्राइबल सब प्लान इलाके में मध्यप्रदेश में 28, राजस्थान में 18 और गुजरात में 25 सीटें हैं। इन 70 सीटों पर फिलहाल कांग्रेस ने एक भी आदिवासी नेता राज्यसभा सांसद नहीं बना रखा है। आदिवासी नेता अब एक सीट राज्यसभा की चाहते हैं। कांग्रेस से जुड़े आदिवासी नेता इसके लिए लॉबिंग भी कर रहे हैं। अपनी बात कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं तक पहुंचाई भी है।

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