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संसद भवन परिसर में प्रमुख नेताओं की प्रतिमाओं के स्थानांतरण पर कांग्रेस अध्यक्ष का बयान, कहा-बिना किसी परामर्श के…

नई दिल्ली: महात्मा गांधी और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर समेत कई महान नेताओं की प्रतिमाओं को संसद भवन परिसर में उनके प्रमुख स्थानों से हटाकर एक अलग कोने में स्थापित पर कांग्रेस अध्यक्ष का बयान सामने आया है. उन्होंन कहा कि बिना किसी परामर्श के मनमाने ढंग से इन मूर्तियों को हटाना हमारे लोकतंत्र की मूल भावना का उल्लंघन है. पूरे संसद भवन में लगभग 50 ऐसी मूर्तियां या आवक्ष प्रतिमाएं हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि महात्मा गांधी, डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर और अन्य प्रमुख नेताओं की प्रतिमाएं उचित विचार-विमर्श के बाद प्रमुख स्थानों पर स्थापित की गईं. प्रत्येक प्रतिमा और संसद भवन परिसर में उसका स्थान अत्यधिक मूल्य और महत्व रखता है. पुराने संसद भवन के ठीक सामने स्थित ध्यान मुद्रा में महात्मा गांधी की प्रतिमा भारत की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अत्यधिक महत्व रखती है. सदस्यों ने अपने भीतर महात्मा की भावना को आत्मसात करते हुए महात्मा गांधी की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की. यह वह स्थान है जहां सदस्य अक्सर अपनी उपस्थिति से शक्ति प्राप्त करते हुए शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन करते थे.

उन्होंने कहा कि डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा भी एक सुविधाजनक स्थान पर रखी गई थी, जो यह शक्तिशाली संदेश देती है कि बाबासाहेब सांसदों की पीढ़ियों को भारत के संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों को दृढ़ता से बनाए रखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि संयोग से 60 के दशक के मध्य में अपने छात्र जीवन के दौरान मैं संसद भवन के परिसर में बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापित करने की मांग में सबसे आगे था. इस तरह के ठोस प्रयासों के परिणामस्वरूप अंततः डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा उसी स्थान पर स्थापित की गई, जहां अब तक वह पहले स्थापित थी. बाबासाहेब की प्रतिमा की पूर्व स्थापना से उनके जन्म और मृत्यु वर्षगांठ पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले लोगों की निर्बाध आवाजाही में भी सुविधा हुई. यह सब अब मनमाने और एकतरफा तरीके से ख़त्म कर दिया गया है.

संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों के चित्र और मूर्तियां स्थापित करने के लिए एक समर्पित समिति है, जिसे संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों के चित्रों और मूर्तियों की स्थापना पर समिति कहा जाता है, जिसमें दोनों सदनों से सांसद भी शामिल हैं. हालांकि 2019 के बाद से समिति का पुनर्गठन नहीं किया गया है. ​प्रासंगिक हितधारकों के साथ उचित चर्चा और विचार-विमर्श के बिना लिए गए ऐसे निर्णय हमारी संसद के नियमों और परंपराओं के खिलाफ हैं.

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