नई दिल्ली/ कोंग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के बाद कांग्रेस में एक बार फिर बगावत हो सकती है. खैर इस बार युद्धभूमि दिल्ली नही बल्कि जम्मू होगी. क्योंकि कई लंबे समय बाद गुलाम नबी आजाद जम्मू में जनसभाओं के लिए लौट रहे है. बता दें कि बीते साल अगस्त में सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में से कुछ नेता एक बार फिर इकट्ठा हो रहे हैं. जम्मू आजाद की कर्मभूमि रही है और इस जगह को पार्टी में बगावत के लिए एकदम बेहतरीन माना जा रहा है.
बता दें कि कांग्रेस के नेता आजाद इस बार भी अकेले नहीं है. आजाद को इस बार भी 6 अन्य नेता बागियों कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, विवेक तन्खा, अखिलेश प्रसाद सिंह, मनीष तिवारी और भूपिंदर हुड्डा का साथ मिल रहा है. इस मुलाकात से एक बात तो साफ है कि ये पार्टी के सामने हिम्मत और एकता का संदेश होगा.
गुलाम नबी आजाद की विदाई के बाद उनकी पार्टी ने सहयोगियों के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था कि उन्हें दूसरे राज्य से राज्यसभा सीट दे दी जाए. माना जाता है कि इस बात से आजाद और कई अन्य लोगों को बुरा लगा था. साथ ही कई जरूरी चुनाव के दौरान पार्टी किसी वरिष्ठ नेता की सलाह नहीं लेती है. बता दें कि पार्टी ने आजाद को नजरंदाज किया.
माना जा है कि आनंद शर्मा के राज्यसभा कार्यकाल में अब सिर्फ एक वर्ष का ही समय बचा है. उन्हें विपक्ष के नेता पद के लिए नजरअंदाज कर दिया गया है. उस पद को राहुल गांधी के करीबी मल्लिकार्जुन खड़गे को दे दी गई है. तो अब क्या. जम्मू में होने वाले इस प्रदर्शन में दो बाते होंगी. पहली कि क्यों वरिष्ठ नेताओं से चुनावी रणनीति को लेकर चर्चा नहीं की गई. दूसरा अध्यक्ष की गैर-मौजूदगी में फैसले कौन ले रहा था.
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