नई दिल्ली: आम जनता को महंगाई से राहत नहीं है. इस बीच जून महीने में खुदरा महंगाई दर 5.08% पर पहुंच गई है. बता दें कि यह बीते 4 महीने का महंगाई का सबसे उच्चतम स्तर है. मालूम हो कि अप्रैल में महंगाई दर 4.85% रही थी. वहीं मई में यह 4.75% रही थी. नेशनल […]
नई दिल्ली: आम जनता को महंगाई से राहत नहीं है. इस बीच जून महीने में खुदरा महंगाई दर 5.08% पर पहुंच गई है. बता दें कि यह बीते 4 महीने का महंगाई का सबसे उच्चतम स्तर है. मालूम हो कि अप्रैल में महंगाई दर 4.85% रही थी. वहीं मई में यह 4.75% रही थी. नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने आज यानी शुक्रवार को ये आंकड़े जारी किए हैं.
महंगाई दर का मतलब है कि किसी देश में सामान और सेवाओं की कीमतें एक समय से दूसरे समय में कितनी बढ़ गई हैं. किसी भी देश की महंगाई दर को कैलकुलेट करने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी Consumer Price Index (CPI) का इस्तेमाल किया जाता है. CPI एक सूचकांक है जो सामान और सेवाओं की कीमतों में होने वाले बदलाव को मापता है.
ये एक तरह से ये बताता है कि रोजमर्रा की चीज़ें, जैसे सब्जी, दूध, तेल, साबुन, कपड़े, किराया, आदि कितनी महंगी या सस्ती हुई हैं. ये आम लोगों की नज़र से महंगाई को नापता है. जैसे, अगर CPI 5% बढ़ता है तो इसका मतलब है कि आम लोगों के लिए ज़िंदगी का खर्च 5% बढ़ गया है. मान लीजिए कि साल 2023 में एक किलो गेहूं की कीमत ₹50 थी. 2024 में एक किलो गेहूं की कीमत ₹55 हो गई.
इसका मतलब है कि 2024 में गेहूं की कीमतें 2023 की तुलना में 10% बढ़ गई हैं. इससे CPI भी बढ़ेगा. अगर CPI इस साल 5% है तो इसका मतलब है कि पिछले एक साल में सामान और सेवाओं की कीमतें औसतन 5% बढ़ गई हैं.
कैसे होती है महंगाई दर की गणना, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक में अंतर समझें