कोयला संकट: जानिए क्यों देश में गहरा रहा है कोयला संकट, ये बड़ी वजह आई सामने

नई दिल्ली। देश में बढ़ती गर्मी के साथ ही बिजली की मांग भी बढ़ गई है. दूसरी ओर, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आयातित कोयले की लागत के कारण, ईंधन की कमी ने कुछ पावर प्लाटों के उत्पादन को प्रभावित किया है. उत्पादन में कमी के चलते कई राज्यों में बिजली कटौती की जा रही है. इससे औद्योगिक गतिविधियों के साथ आम जनजीवन भी प्रभावित हो रहा है. कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व निदेशक (विपणन) एसएन प्रसाद ने कहा कि बिजली की मांग बढ़ने और ईंधन आयात में कमी के कारण ऐसा हो रहा है.

भारत बिजली संकट की ओर क्यों बढ़ रहा है?

एसएन प्रसाद ने कहा कि घरेलू कोयले की आपूर्ति बिजली संकट का कारण नहीं है. देश में कोयले के उत्पादन और उपभोक्ताओं को इसकी आपूर्ति में लगातार वृद्धि हुई है. वित्तीय वर्ष 2021-22 में उपभोक्ताओं को 66.3 करोड़ टन कोयले की आपूर्ति की गई, जो एक रिकॉर्ड है.बिजली संकट का प्रमुख कारण आयातित कोयले और गैस आधारित संयंत्रों में ईंधन की कमी है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण विश्व स्तर पर कोयले और अन्य ईंधनों की कीमतों में वृद्धि हुई है.0इसके चलते बिजली संयंत्र कोयले के आयात से परहेज कर रहे हैं. घरेलू स्तर की बात करें तो कोयला क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है. वित्तीय वर्ष 2021-22 में कोल इंडिया का उत्पादन 622.6 मिलियन टन तक पहुंच गया. सिंगरेनी और निजी तौर पर इस्तेमाल होने वाली कोयला खदानों का उत्पादन भी बढ़ा है.

भीषण गर्मी से हो रही है यह समस्या

उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा बिजली संकट का एक कारण पारा बढ़ने से बिजली की मांग में अचानक वृद्धि होना है. इसका एक कारण गर्मी के साथ-साथ हर घर में बिजली की पहुंच भी है. इसके साथ ही आज एसी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का उपयोग भी काफी बढ़ गया है. इसके अलावा बिजली वितरण कंपनियों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति से भी आपूर्ति प्रभावित हुई है. हीट हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्लांट्स में भी समस्या पैदा करती है. कोल इंडिया के पास अभी भी लगभग 60 मिलियन टन कोयला है. सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड के पास 40 मिलियन टन से अधिक कोयला भंडार होने का अनुमान है.

बिजली कंपनियों पर भारी बकाया

एसएन प्रसाद ने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर दिक्कत है. अगर मालगाड़ी और यात्री ट्रेन एक ही पटरी पर चलेंगी तो परेशानी होना स्वाभाविक है. मालगाड़ियों में कोयले के अलावा अन्य सामान भी जाना होता है. ऐसे में सरकार प्राथमिकता तय करती है कि क्या जरूरत है. हालांकि मालगाड़ियों के लिए अलग कॉरिडोर बनाने का काम तेजी से चल रहा है. अगर यह पूरी तरह से चालू हो जाता है, तो समस्या दूर हो जाएगी. कोयला उत्पादक कंपनियों का बिजली कंपनियों को बकाया भी एक समस्या है. कोल इंडिया पर बिजली पैदा करने वाली कंपनियों का करीब 12,000 करोड़ रुपये बकाया है. वहीं बिजली पैदा करने वाली कंपनियों का कहना है कि वितरण कंपनियां पैसा नहीं दे रही हैं, हम कहां से दें.

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