नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ अनुसूचित जाति तता अनुसूचित जनजाति के बीच बस कैटेगराइजेशन यानी उप-वर्गीकरण की वैधता के मामले की सुनवाई कर रही है। यह मामला सात जजों की संविधान पीठ सुन रही है जिसका नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं। आज इस सुनवाई का तीसरा दिन है, सीजेआई […]
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ अनुसूचित जाति तता अनुसूचित जनजाति के बीच बस कैटेगराइजेशन यानी उप-वर्गीकरण की वैधता के मामले की सुनवाई कर रही है। यह मामला सात जजों की संविधान पीठ सुन रही है जिसका नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं। आज इस सुनवाई का तीसरा दिन है, सीजेआई आज की सुनवाई के दौरान बोले कि भारत में ऐसी कोई जाति नहीं है, जिसे अनुसूचित जाति कहा जाए। उन्होंने कहा कि संविधान जो करता है, वो यह है कि ये कुछ जातियों को अनुसूचित जाति मानता है और इस तरह कुछ को कृत्रिम सांचे में डाल दिया जाता है।
इस दौरान सीजेआई ने कहा कि संविधान ने दूसरी जाति नहीं बनाई, क्योंकि ये समाजशास्त्रीय प्रोफ़ाइल के विपरीत होगा। सीजेआई ने कहा कि इन्हें किसी और वजह से नहीं, बल्कि इनको अनुसूचित जाति में शामिल माना जा रहा है। इस पर सीनियर वकील मनोज स्वरूप से चीफ जस्टिस ने कहा कि ‘आप कह रहे हैं कि उनमें पहले से ही विविधता थी, लेकिन एक ही समूह में रखे जाने के बाद वो समान हो जाते हैं।
सीजेआई ने सवाल किया कि सामान्य लक्षणों से आपका क्या मतलब है? केवल एक चीज समान है कि उन सब को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। इसके अलावा क्या समानता हैं? इसके बाद सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन, महिलाओं की शादी की उम्र, मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा जैसे कुछ अन्य सवाल भी सुनवाई के दौरान उठे। इस पर वकील स्वरूप ने कहा कि अनुच्छेद 341 तथा 342 में बदलाव केवल संसद के जरिये ही मुमकिन है।
बता दें कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, विक्रम नाथ, पंकज मिथल, बीआर गवई, मनोज मिसरा, सतीश चंद्र शर्मा तथा संदीप मेहता की पीठ, एससी-एसटी रिजर्वेशन के सब-कैटेगराइजेशन पर सुनवाई कर रही है। ये इ साल का दूसरा ऐसा मामला है कि जिसकी सुनवाई संविधान पीठ कर रही है।