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नागरिकता कानून पर मोदी सरकार को मिली जीत, बांग्लादेशी शरणार्थियों को मिलेगी भारतीय नागरिकता

नागरिकता कानून पर मोदी सरकार को मिली जीत, बांग्लादेशी शरणार्थियों को मिलेगी भारतीय नागरिकता

नई  दिल्लीः  सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज सुबह नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर अपना फैसला सुनाया। धारा 6 के अनुसार, 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए बांग्लादेशी शरणार्थी खुद को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकते हैं। हालांकि, 25 मार्च 1971 के बाद असम आए विदेशी भारतीय नागरिकता के लिए पात्र नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि 1966 से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने से राज्य का जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ रहा है। राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है।

सीजेआई ने  कहा कट ऑफ डेट सही

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि बहुमत ने फैसला किया है कि नागरिकता कानून की धारा 6ए संवैधानिक रूप से सही है। जस्टिस पारदीवाला ने कानून में संशोधन को गलत बताया है। यानी 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से असम आए लोगों की नागरिकता खतरे में नहीं आएगी। आंकड़ों की बात करें तो असम में 40 लाख अवैध अप्रवासी हैं। पश्चिम बंगाल में ऐसे लोगों की संख्या 57 लाख है, फिर भी असम की कम आबादी को देखते हुए वहां के लिए अलग कट ऑफ डेट बनाना जरूरी था। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चंद्रचूड़ ने कहा कि 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट सही है।

क्या है धारा 6A के प्रावधान

सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से नागरिकता कानून की धारा 6A को बरकरार रखा है। धारा 6A के तहत 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से असम आए लोगों की नागरिकता बनी रहेगी। उसके बाद आए लोगों को अवैध नागरिक माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असम की कम आबादी को देखते हुए कट-ऑफ डेट बनाना सही था।

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