Chhath Puja 2018: आस्था और विश्वास के महापर्व और चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा नहाय खाय के साथ 11 नवंबर से शुरू हो चुकी है. छठ पूजा को लेकर लोगों के मन में सवाल रहता है कि आखिर कब और कैसे इस महापर्व की शुरूआत हुई. छठ मिथिला क्षेत्र का मूल पर्व है. इस पर्व से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि यह कोई धार्मिक त्योहार नहीं है बल्कि यह एक प्राकृतिक त्योहार है और इसका सीधा संबंध फसलों से जुड़ा है.
नई दिल्लीः Chhath Puja 2018: 11 नवंबर यानी रविवार को नहाय खाय के साथ आस्था और विश्वास के महापर्व छठ पूजा की शुरूआत हो चुकी है. यह चार दिनों तक चलती है. सोमवार को खरना निर्जला व्रत शुरू होगा. छठ पूजा को लेकर तमाम किस्से-कहानियां हैं. छठ मिथिला क्षेत्र का मूल पर्व है और यह प्राचीन काल से सिर्फ मिथिला में ही मनाया जाता रहा है. छठ पूजा कैसे शुरू हुई और इसे क्यों मनाया जाता है इसको लेकर एक मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल में फसल के देवता यानी भगवान सूर्य को समर्पित और उनकी पूजा से इसकी शुरूआत हुई. यह कोई धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि प्राकृतिक त्योहार है.
पृथ्वी पर किसी भी फसल के अंकुरण के लिए तीन मूल तत्व जरूरी हैं- पहला जल, दूसरा हवा और तीसरा सूर्य. छठ महापर्व बरसाती यानी खरीफ फसलों के बाद और रबी के शुरू होने के पहले कार्तिक मास में मनाया जाता है. इस पूजा में या इसे कराने में किसी ब्राह्मण की जरूरत नहीं होती है. प्रातीन काल में यह पर्व केवल किसान परिवार या किसानी के क्षेत्र से जुड़े मजदूर मनाते थे. अब किसान परिवार या फिर मजदूरी आदि से जुड़े अन्य व्यवसाय और नौकरीपेशा लोग भी इसे मनाने लगे हैं. इस पर्व में घर की बुजुर्ग महिला या घर की मालकिन पूजा में हिस्सा लेती हैं.
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इस त्योहार में बरसाती मौसम में उपजी स्थानीय फसल (मूली, ओल, हल्दी, ऊँख, केला, सुथनी, जलीय सिंघाड़ा आदि) को ईश्वर को अर्पित करते हुए धन्यवाद देते हैं. यह सभी फसलें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं और हर किसी की पहुंच में होती हैं. इन सभी फसलों को बांस से बनी पेटी में रखकर अर्पित यानी अर्घ्य चढ़ाते हैं. बदलते वक्त के साथ-साथ लोग अब सेब, नारियल भी पूजा में चढ़ाने लगे हैं. यह हरे क्षेत्र में नहीं होता था, अतः पहले नहीं चढ़ाया जाता था. भगवान सूर्य को पिसे चावल, चीनी, घी से बनी मिठाई भी चढ़ाई जाती है. यह सब फसल ईश्वर को उनकी कृपा या दया से उत्पन्न हुए और हम सब को भोजन आहार प्राप्त हुआ, अतः धन्यवाद देने के रूप में अर्पित करते हैं.
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इसी माह में गेहूं की बुआई करना शुरू होता है, अतः इस प्रार्थना के साथ कि हमें आगे गेहूं, तेल, दाल की फसल ईश्वर भरपूर देना ताकि हमारी और हमारे परिवार, समाज का साल भर भरण-पोषण हो सके. इसलिए हम गेहूं के आटे, घी या तेल और गुड़ या चीनी से बने पकवान ईश्वर को चढ़ाते हैं. छठ पूजा के तीसरे दिन शाम को डूबते सूर्य की पूजा होती है. इस शाम हम ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि आपकी कृपा से हमें खरीफ यानी बरसाती फसल भरपूर प्राप्त हुआ,और हमारा भरण पोषण हो रहा है. उगते सूर्य की पूजा के साथ-साथ याचना करते हैं कि हम अब जो रबी फसल जैसे- गेहूं, सरसों, तिलहन, दलहन आदि बोएंगे, उसे प्रचुर मात्रा में उपजा दें ताकि हमारे परिवार का आगे भी भरण-पोषण हो सके.
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बायोलॉजी के अंकुरण के सिद्धांत के अनुरूप, हम जल में खड़े होकर वायु में, सूर्य की ओर मुख कर अर्घ्य देते हैं. इस पर्व की शुरुआत केवल मिथिला क्षेत्र में हुई थी लेकिन अब समूची दुनिया में धूमधाम से इसे मनाया जाने लगा है. मुंबई में समुद्र तट पर बहुत धूमधाम से इसे मनाया जाता है. इंग्लैंड, अमेरिका, जापान या अन्य देशों में रह रहे भारतीय भी इसे मनाते हैं. लंदन की थेम्स नदी और अन्य देशों की प्रमुख नदियों के किनारे इसे धूमधाम से मनाया जाने लगा है. दूसरे धर्म के लोग भी इस पर्व को मनाने लगे हैं. इस साल अमेरिका और मेक्सिको में खेती से जुड़े लोग भी व्यापक तौर पर इस पर्व को मना रहे हैं. बताते चलें कि यह पर्व वेद काल से चला आ रहा है और सिंधु घाटी की सभ्यता में इसे मनाने के सबूत भी मिले हैं.
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इस पर्व को छठ इसलिए कहते हैं क्योंकि यह कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के छठे दिन मुख्य रूप से मनाया जाता है. छठ को छठी मां या छठी मैया इसलिए कहा जाता है क्योंकि छठी के दिन से सूर्य, शुद्ध हवा और जल के संजोग से धरती मां गर्भ यानी प्रेग्नेंसी धारण करना शुरू करती हैं. मां की प्रमुखता होती है इसलिए इस पर्व को छठी मैया कहते हैं. छठ के सारे गीत मैथली भाषा में है और यह अन्य किसी भाषा में नहीं हैं. यह भी कहा जाता है कि किसी भी इंसान के जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती है उस दिन इन्हीं षष्ठी देवी की पूजा की जाती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया को कात्यायनी नाम से भी जाना जाता है. नवरात्रि की छठे दिन मां कात्यायनी की ही पूजा की जाती है.
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