चंद्रबाबू नायडू ने वो किया जो मुलायम-लालू जैसे सूरमा नहीं कर पाये!

नई दिल्ली. टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. मंत्रिमंडल में उन्होंने जनसेना प्रमुख एवं अभिनेता पवन कल्याण तथा अपने बेटे नारा लोकेश को भी शामिल किया है. पवन कल्याण उप मुख्यमंत्री बनेंगे और बेटा लोकेश पिता से सियासत और सरकार चलाने के दांव पेंच सीखेगा.


बादल व ठाकरे की राह पर नायडू

बेटे नारा लोकेश को मंत्रिमंडल में शामिल कर चंद्रबाबू ने बहुत बड़ा संदेश दिया है. भारतीय राजनीति में कई ऐसे सूरमा हैं जिन्होंने अपने बेटों को विरासत सौंपी लेकिन उससे पहले अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर सरकार चलाने के गुर सिखाये. जैसे 2006 से 2011 तक जब तमिलनाडु में डीएमके की सरकार थी तब सीएम एम करुणानिधि ने बेटे स्टालिन को मंत्रिमंडल में शामल कर सियासत व सरकार के गुर सिखाये थे. इसी तरह पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल ने सीएम रहते सुखबीर सिंह बादल को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था.

हालिया उदाहरण लें तो महाराष्ट्र में जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सीएम बनें तो उन्होंने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को मंत्री बनाया. बताया जाता है कि वह आदित्य ठाकरे को ही सीएम बनना चाहते थे लेकिन अनुभव न होने की वजह से सहयोगी आदित्य के नाम पर तैयार नहीं हुए थे और शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को खुद कमान संभालने की सलाह दी थी.

लालू-मुलायम से आगे निकले नायडू

एम करुणानिधि, प्रकाश सिंह बादल व उद्धव ठाकरे अपने लाडलों के हाथ पकड़ सत्ता की सीढीं चढ़ा ले गये लेकिन ये काम लालू और मुलायम नहीं कर पाये. मुलायम सिंह यादव यूपी के तीन बार सीएम बने लेकिन बेटे अखिलेश यादव को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया. हालांकि 2012 में मुलायम ने अखिलेश को सीधे सीएम बनाया और इसके लिए आजम खान जैसे सहयोगियों का काफी मान मनौव्वल भी किया.

ऐसे ही बिहार में लालू और उनकी पत्नी राबड़ी दोनों सीएम रहे लेकिन बेटों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया. ये दोनों मन मसोस कर रह गये क्योंकि तब बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी यादव दोनों छोटे थे. एक पुरानी कहावत है कि खून पानी से गाढ़ा होता यानी कि खून के रिश्ते में खिंचाव और मोह ज्यादा होता है. इतिहास गवाह है कि अपने बेटों के लिए बादशाहों ने न जानें कितनी कुर्बानियां लीं.

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Vidya Shanker Tiwari

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