देश-प्रदेश

Bhagat Singh Birth Anniversary: चंद्रशेखर आजाद का था खौफ, भगत सिंह मूवी देखने के लिए भूखे सो गए

नई दिल्ली. भले ही देश के लिए भगत सिंह ने घर और आपनी सारी आकांक्षाएं त्याग दी थीं, लेकिन फुरसत के पलों में वो और उनके क्रांतिकारी दोस्त फिल्में देखने का मौका हाथ से नहीं चूकते थे. ये अलग बात थी कि सिनेमा घरों पर पुलिस और गुप्तचरों का भी खतरा रहता था और इसके चलते काफी सावधानी भी बरतनी पड़ती थी. लेकिन एक दिन लाहौर में भगत सिंह को एक फिल्म देखने का ऐसा भूत सवार हुआ कि दोनों वक्त के खाने के पैसे से टिकटें खरीद ली और पूरे दिन हो गया उपवास.

ये वाकया 1927-28 का है, अंकल टॉम्स केबिन नाम की एक अंग्रेजी फिल्म भारत के भी सिनेमाघरों में लगी थी, मूक फिल्मों का दौर था ये, इस फिल्म के डायरेक्टर थे हैरी ए पोलार्ड. इस फिल्म में अनेरिकी हब्शी गुलामों पर होने वाले अत्याचारों को दिखाया गया था. फिल्म के पोस्टर को देखकर भगत सिंह का मन फिल्म देखने का करने लगा, उनके साथ विजय सिन्हा और भगवान दास माहौर थे. उन दिनों क्रांतिकारियों के संगठन के कर्ताधर्ता थे चंद्रशेखर आजाद, वो पैसे को लेकर बड़े ही सख्त थे, हर पैसे का हिसाब लेते थे. उन्होंने शाम के खाने और अगले दिन के खाने के लिए भगवान दास को डेढ़ रुपया दिया हुआ था. उन दिनों पंजाब में चार आने का भी दो वक्त का खाना मिल जाता था.

डेढ़ पैसे की सूखी रोटी और दो पैसे की चुपड़ी रोटी मिलती थी और दाल या सब्जी तो मुफ्त मिलते थे. ऐसे में जब भगत सिंह ने पूछा कि कितने पैसे हैं, तो भगवान दास ने ये कहकर मना कर दिया कि महाशय सारे पैसे का हिसाब लेंगे. ‘महाशय’ चंद्रशेखर आजाद के लिए कहा जाता था. जबकि भगत सिंह का नाम छुपाने के लिए उन्हें रणजीत कहा जाता था. भगवान दास का इनकार सुनकर भगत सिंह ने उनको एक लम्बा लैक्चर दे डाला कि क्रांतिकारियों के जीवन में आर्ट का ब़ड़ा रोल है, वैसे भी फिल्म गुलामी से मुक्ति के बारे में है, इसे देखने से क्रांतिकारियों का मनोबल बढ़ेगा. लेकिन भगवान दास माहौर पर इसका कोई असर नहीं हुआ. वो एक ही बात दोहराते रहे, महाशयजी का आदेश है कि ‘खाने के अलावा किसी और मद में ये पैसा खर्च ना किया जाए’.

इसे सुनकर भगत सिंह संगठन के ‘अंध अनुशासन’ के साइड इफैक्टस् पर लैक्चर देने लगे, लेकिन भगवान दास फिर भी टस से मस ना हुए. उसके बाद तो भगत सिंह उनके साथ छीना झपटी तक करने लगे. ये सब हो मजाक में ही रहा था क्योंकि मना करने के बावजूद भगवान दास उन दोनों के साथ सिनेमा हॉल की तरफ ही बढ़ते जा रहे थे. मन में तो फिल्म देखने की हसरत भगवान दास के भी थी, सो ठीकरा भगत सिंह के सर फोड़ दिया और कहा कि ‘ये लो पैसे, तुम छीन रहे हो इसलिए दे रहा हूं, स्वेच्छा से नहीं दे रहा हूं.‘ भगत सिंह हंसकर बोले, ‘अच्छा यही समझ लो और ये भी मान लो कि मैं तुम्हे चवन्नी वाले तीन टिकट लेने पीट पीट कर भेज रहा हूं’.

आगे क्या हुआ? टिकटें मिलीं कि नहीं? घर पहुंचे तो आजाद का रिएक्शन क्या था? भूखे क्यों सोए सारे क्रांतिकारी? पूरी कहानी जानने के लिए देखिए ये वीडियो स्टोरी विष्णु शर्मा के साथ

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Aanchal Pandey

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