नई दिल्ली: अनुसूचित जाति और जनजाति के संपन्न तबके को क्रीमी लेयर के जरिए आरक्षण के लाभ प्राप्त करने से वंचित करने की संभावना से केंद्र सरकार ने इंकार किया है. सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह पूरा समुदाय ही ‘पिछड़ा’ है. गैर सरकारी संगठन समता आंदोलन समिति की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ के समक्ष यह तर्क दिया.
अतिरिक्त सॉलिसिटर ने कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि समूची अनुसूचित जाति और जनजाति इतनी अधिक पिछड़ी हुई हैं कि यह सिद्धांत इन पर लागू ही नहीं किया जा सकता है. इस पर याचिकाकर्ता के वकील शंकरनारायणन ने कहा कि संपन्न तबके को आरक्षण से बाहर नहीं करने की वजह से इन वर्गों में आरक्षण के हकदार लोग इससे वंचित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा भी अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों द्वारा ही उठाया गया है.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने इस मामले पर केंद्र सरकार को चार सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. साथ ही जनहित याचिका को अंतिम निबटारे के लिए जुलाई के दूसरे सप्ताह में सूचीबद्ध कर दिया है. याचिका में दावा किया गया है कि इन वर्गों का प्रभावशाली तबका अधिकांश लाभों पर कब्जा कर लेता है और 95 फीसदी लोग आरक्षण के लाभ से वंचित रह जाते हैं.
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