नई दिल्ली। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह की सजा के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि देशद्रोह कानून को खत्म करने की जरूरत नहीं है बल्कि इस पर दिशा-निर्देशों की जरूरत है. अटॉर्नी […]
नई दिल्ली। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह की सजा के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि देशद्रोह कानून को खत्म करने की जरूरत नहीं है बल्कि इस पर दिशा-निर्देशों की जरूरत है. अटॉर्नी जनरल ने कहा, “कानून के तहत क्या अनुमति है, क्या अस्वीकार्य है और क्या राजद्रोह के तहत आ सकता है, यह देखने की जरूरत है.
साथ ही, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामले को अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए. उन्होंने कहा कि वकीलों ने राजद्रोह कानून का मसौदा तैयार किया है. उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि सरकार को अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति देने के लिए सुनवाई स्थगित कर दी जाए. केंद्र सरकार के आवेदन पर 10 मई को फिर से मामले की सुनवाई होगी.
आपको बता दें कि देश की शीर्ष अदालत ने 27 अप्रैल को हुई पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए आज यानि 5 मई की तारीख तय की थी. मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने तब कहा था कि मामले में आगे कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा. अदालत ने कहा था कि वह स्थगन के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी.
केंद्र ने इस मामले में कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. केंद्र सरकार ने कहा कि इसका मसौदा तैयार है और वह सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रही है. देशद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किए गए प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही है. कोर्ट ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता कानून का दुरुपयोग है जिसके कारण मामलों की संख्या बढ़ रही है.
पिछले साल जुलाई में एक सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा था, ‘यह एक औपनिवेशिक कानून है. यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था. इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक को चुप कराने के लिए किया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है?’याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के कन्हैया लाल शुक्ला शामिल हैं.