CBI Alok Verma Rakesh Asthana War Reason: सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल निदेशक राकेश अस्थाना का झगड़ा कैसे और कब शुरू हुआ

CBI Alok Verma Rakesh Asthana War Reason: भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने वाली देश की सबसे ताकतवार जांच एजेंसी के दोनों बड़े बॉस डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल निदेशक राकेश अस्थाना को नरेंद्र मोदी सरकार ने छुट्टी पर भेजते हुए नागेश्वर राव को एक्टिंग डायरेक्टर बना दिया है. नंबर वन और टू की लड़ाई में सीबीआई की साख पर जो संकट खड़ा हुआ है वो अभूतपूर्व है. आइए जानते हैं कि सरकार और सीबीआई को शर्मसार करने वाले इस हालात तक राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा के रिश्ते पहुंचे कैसे, आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच झगड़े की शुरुआत कब और कैसे हुई.

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CBI Alok Verma Rakesh Asthana War Reason: सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल निदेशक राकेश अस्थाना का झगड़ा कैसे और कब शुरू हुआ

Aanchal Pandey

  • October 24, 2018 10:55 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को नरेंद्र मोदी सरकार ने छुट्टी पर भेजकर सीबीआई की कमान अंतरिम निदेशक के तौर पर नागेश्वर राव को दे दी है. वर्मा और अस्थाना के एक-दूसरे के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए एसआईटी बनाने का सरकार ने ऐलान किया है लेकिन लोगों की समझ में ये नहीं आ रहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रियपात्र राकेश अस्थाना और उनके ही द्वारा चुने गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा आखिर एक-दूसरे से इस कदर कैसे भिड़ गए कि बात एफआईआर, कोर्ट कचहरी और अब सीवीसी की सिफारिश के जरिए सरकारी हस्तक्षेप तक पहुंच गई.

केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच झगड़े की नीव उसी दिन पड़ गई थी जब दोनों अफसर अपने-अपने अफसरों को सीबीआई में लाने के लिए भिड़ गए. आलोक वर्मा के निदेशक बनने से पहले एडिशनल डायरेक्टर अस्थाना कार्यकारी निदेशक थे और कोर्ट में किरकिरी के बाद सरकार को पूर्णकालिक निदेशक के तौर पर आलोक वर्मा को लाना पड़ा था. सीवीसी में निदेशक के तौर पर आलोक वर्मा की बात की चलनी चाहिए थी लेकिन चलती थी राकेश अस्थाना की. यह लड़ाई पिछले साल तब खुलकर सतह पर आ गई जब निदेशक आलोक वर्मा ने इस आधार पर अस्थाना को विशेष निदेशक बनाने का विरोध किया कि उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप हैं लेकिन उनकी आपत्ति को खारिज कर सीवीसी ने अस्थाना की फाइल क्लीयर कर दी और सीसीए यानी सरकार ने भी रातों-रात उन्हें विशेष निदेशक बना दिया.

आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना का झगड़ा एक बार तब और सतह पर आया जब इसी साल जुलाई में आलोक वर्मा इंटरपोल की बैठक में भाग लेने उरुग्वे गये थे और 12 जुलाई को सीवीसी ने कुछ अफसरों को सीबीआई में लाने और जिनका कार्यकाल पूरा हो गया था उन्हें वापस भेजने के लिए बैठक बुला ली. वर्मा को लगा कि उनके पसंदीदा अफसरों का पत्ता अस्थाना कटवा सकते हैं लिहाजा उन्होंने पत्र लिख दिया कि उनकी अनुपस्थिति में अस्थाना जांच एजेंसी का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे. यह पत्र भी मीडिया के सुर्खियों मे रहा. सीबीआई निदेशक के इस पत्र से सरकार और सीवीसी दोनों नाराज हुए लेकिन कहा कुछ नहीं.

इसके बाद राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा के बीच आईआरसीटीसी घोटाला, शारदा घोटाला और मोईन कुरैशी समेत कई मामलों में मतभेद उभरे. इन सभी मामलों की जांच राकेश अस्थाना कर रहे थे. ये सब अभी चल ही रहा था कि 24 अगस्त, 2018 को राकेश अस्थाना ने कैबिनेट सेक्रेटरी व सीवीसी को एक पत्र लिख दिया कि आलोक वर्मा भ्रष्टाचार के कई मामलों में लिप्त हैं जिसमें मोईन कुरैशी का मामला भी शामिल था. आरोप है कि जिस सतीश बाबू सना ने अस्थाना के खिलाफ शिकायत की, उसकी गिरफ्तारी सीबीआई निदेशक ने रोकी थी. इस पत्र पर सीवीसी ने निदेशक आलोक वर्मा से 11 सितंबर को जवाब मांगा और संबंधित फाइलें पेश करने को कहा जिसका उन्होंने कोई जवाब नही दिया और तय कर लिया कि राकेश अस्थाना की पोल खोलकर मानेंगे.

उन्होंने अपने चहेते अफसरों को मोईन कुरैशी मामले पर नजर रखने के लिए लगा दिया और जैसे ही एक आरोपी मनोज प्रसाद की गिरफ्तारी हुई राकेश अस्थाना के पास सिफारिशों का दौर शुरू हो गया. इधर सीबीआई फोन टेप कर रही थी जिसमें राकेश अस्थाना और आरोपियों के बीच बातचीत हो रही थी. इन्होंने भी पलटकर फोन किया था. मनोज के फोन के व्हाट्सएप्प मैसेज से भी काफी जानकारियां मिली. जिस सतीश बाबू सना से डीएसपी देवेंद्र कुमार के जरिये रिश्वतखोरी को अंजाम दिया जा रहा था, उस पर नजर रखी गई, आरोपी के फर्जी बयान दर्ज करने के जैसे ही साक्ष्य मिले, अस्थाना और देवेंद्र के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस बीच एक और बड़ी घटना हुई कि राफेल सौदे में घोटाले और गड़बड़ी की शिकायत देने गये नेताओं से सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ना सिर्फ मिले बल्कि उनका खूब आवभगत किया. बताते हैं कि आलोक वर्मा राफेल डील को लेकर पीई दर्ज करने पर विचार कर रहे थे जिसकी जानकारी सरकार तक पहुंच रही थी. इधर राकेश अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के बाद सीबीआई निदेशक सत्ता के शीर्षस्थ लोगों से मिले थे और उन्हे कानून के मुताबिक चलने को कहा गया. बताते हैं कि सीबीआई में जो कुछ भी चल रहा था, उससे सरकार खुश नहीं थी लेकिन सीधे सीबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकती थी.

इसलिए उसने पहले अस्थाना मामले में हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार किया और जब वहां अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो सीवीसी की सिफारिश पर दोनों को छुट्टी पर भेज दिया और सीबीआई में मौजूद तीन अफसरों की वरिष्ठता को दरकिनार कर संयुक्त निदेशक स्तर के अधिकारी एम नागेश्वर राव को कार्यवाहक निदेशक बना दिया. पूरा ऑपरेशन मिडनाइट में हुआ. राव ने रात में ही मोर्चा संभाला और सुबह होते ही कुरैशी मामले की जांच कर रहे तथा आलोक वर्मा के नजदीकी तेरह अफसरों को तत्काल हटा दिया. ऐसा सीबीआई के इतिहास में पहली बार हुआ है जिसको लेकर सीबीआई में रहे अफसर भी सकते में हैं और उनका मानना है कि इस प्रकरण से जांच एजेंसी की साख को गहरा धक्का लगा है.

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