नई दिल्ली: संसद में जाति को लेकर जंग खत्म हुई तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी एक पत्रिका ने जाति व्यवस्था को भारत की एकता का कारक बताकर उसे सही ठहराया है। पांचजन्य पत्रिका के संपादकीय में जाति व्यवस्था को भारतीय समाज को एकजुट करने का कारण बताया गया है और कहा गया है कि मुगल इसे समझ नहीं पाए और अंग्रेजों ने इसे देश पर आक्रमण में बाधा के रूप में देखा। संपादकीय में मुख्य रूप से मिशनरियों को निशाना बनाया गया है और लिखा है कि मिशनरियों ने सेवा की आड़ में भारतीय जाति व्यवस्था को तोड़ने की कोशिश की।
संपादकीय में दिए गए तर्क के अनुसार जाति व्यवस्था हमेशा से ही आक्रमणकारियों के निशाने पर रही। मुगलों ने जहां तलवार के बल पर इसे निशाना बनाया, वहीं मिशनरियों ने सेवा और सुधार की आड़ में इसे निशाना बनाया। जाति के रूप में भारतीय समाज ने एक बात समझी कि अपनी जाति के साथ विश्वासघात करना राष्ट्र के साथ विश्वासघात करना है। मिशनरियों ने भारत के इस एकीकरण के समीकरण को मुगलों से बेहतर समझा कि अगर भारत और इसके स्वाभिमान को तोड़ना है तो सबसे पहले जाति व्यवस्था या इस एकीकरण कारक को बाधा या जंजीर कहकर तोड़ना होगा।
संपादकीय में तर्क दिया गया है कि मिशनरियों द्वारा जाति व्यवस्था की यह समझ अंग्रेजों द्वारा अपनी फूट डालो और राज करो की नीति के लिए अपनाई गई थी। संपादकीय में कांग्रेस पर भी हमला किया गया है।
संपादकीय में लिखा गया कि मिशनरियों ने जाति को अपने धर्मांतरण के कार्यक्रम में बाधा के रूप में देखा, जबकि कांग्रेस ने इसे हिंदू एकता में कांटा माना। कांग्रेस जाति जनगणना इसलिए करवाना चाहती है क्योंकि वह अंग्रेजों की तर्ज पर जाति के आधार पर लोकसभा सीटों का बंटवारा करके देश में विभाजन बढ़ाना चाहती है।
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