नई दिल्ली. बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर सियासत गर्माने लगी है। सोमवार को इस मुद्दे पर सीएम नीतीश कुमार, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव समेत कुल 11 नेताओं का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने पहुंचा है। अलग-अलग दलों के ये नेता, प्रधानमंत्री से मिलकर उनके सामने जाति आधारित जनगणना को लेकर अपना पक्ष रख रहे हैं। यह मुलाकात साउथ ब्लॉक के प्रधानमंत्री के दफ़्तर पर हो रही है।
सीएम के साथ पीएम से मिलने गए प्रतिनिधिमंडल में 10 दलों के नेता शामिल हैं। इसमें सीएम नीतीश के अलावा नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, जेडीयू के विजय कुमार चौधरी, भाजपा के जनक राम, कांग्रेस के अजीत शर्मा, भाकपा माले के महबूब आलम, एआईएमआईएम अख्तरुल ईमान, हम के जीतन राम मांझी, वीआईपी के मुकेश सहनी, भाकपा के सूर्यकांत पासवान और माकपा के अजय कुमार शामिल हैं।
अगले साल सात राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए जाति आधारित जनगणना की इस चर्चा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके पहले नीतीश कुमार पहले ही साफ कर चुके हैं कि अगर यह बातचीत सफल रहती हैं तो बहुत बढ़िया है, वर्ना वह बिहार में इसे कराने पर विचार करेंगे। नीतीश कुमार ने कहा, ‘यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और हम लंबे समय से इसकी मांग कर रहे हैं। अगर यह हो जाता है, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। इसके अलावा, यह सिर्फ बिहार के लिए नहीं होगा, पूरे देश में लोगों को इससे फायदा होगा। इसे कम से कम एक बार किया जाना चाहिए।’
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी है और जाति आधारित जनगणना के पक्ष में है। इस महीने की शुरुआत में, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह के नेतृत्व में जद (यू) के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की थी। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार से कहा है कि अगर केंद्र अपने स्टैंड से हटने से इनकार करता है तो वह अपने दम पर इसे करे। बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन 30 जुलाई को यादव ने इस मुद्दे पर सीएम से मुलाकात की थी।
नीतीश कुमार ने शनिवार को संवाददाताओं से कहा था, ‘लोगों की इच्छा है कि जाति के आधार पर जनगणना हो। मुझे आशा है कि इस पर सकारात्मक चर्चा होगी। अगर देश में केंद्र द्वारा जाति जनगणना नहीं कराई जाती है, तो बिहार में सरकार द्वारा इस पर विचार किया जाएगा।’
पिछली जाति-आधारित जनगणना 1931 में हुई और जारी की गई थी। जबकि 1941 में, डेटा एकत्र किया गया था लेकिन सार्वजनिक नहीं किया गया। 2011 में, सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना की गई थी, लेकिन विसंगतियों के आधार पर एकत्र किए गए इस डेटा को भी सार्वजनिक नहीं किया गया था। अगले साल सात राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए जाति आधारित जनगणना कराना सरकार के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है। जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर कई राजनीतिक दल एक साथ आए हैं। जद-यू, अपना दल और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया-अठावले जैसे भाजपा सहयोगियों ने जाति आधारित जनगणना कराने की मांग उठा रहे हैं। कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी जैसे कई विपक्षी दल भी इसकी मांग कर रहे हैं।
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