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दलाई लामा को बुला रहे, शंकराचार्य को नहीं… अविमुक्तेश्वरानंद ने फिर उठाए प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल

नई दिल्ली: 22 जनवरी को अयोध्या में निर्माणधीन मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. जिसे लेकर राम नगरी में तैयारियां जोरो पर हैं. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत कई राजनेता और गणमान्य लोग शामिल होंगे. इसके साथ ही देशभर […]

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दलाई लामा को बुला रहे, शंकराचार्य को नहीं… अविमुक्तेश्वरानंद ने फिर उठाए प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल
  • January 18, 2024 11:48 am Asia/KolkataIST, Updated 11 months ago

नई दिल्ली: 22 जनवरी को अयोध्या में निर्माणधीन मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. जिसे लेकर राम नगरी में तैयारियां जोरो पर हैं. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत कई राजनेता और गणमान्य लोग शामिल होंगे. इसके साथ ही देशभर से 4000 साधु-संत भी इसमें हिस्सा लेंगे. वहीं, चारों शंकराचार्यों ने इस समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है. इस बीच ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मंदिर का निर्माण पूरा होने से पहले प्राण प्रतिष्ठा किए जाने को लेकर सवाल उठाए हैं.

अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने क्या कहा?

प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर मीडिया से बात करते हुए अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा हमें प्रोटोकॉल नहीं मिला है. जो प्रोटोकॉल हमें परंपरा के तहत मिलता है. हमसें उसे छीन लिया गया है. लेकिन दलाई लामा को प्रोटोकॉल दिया गया है, जो हिंदू धर्म के गुरु भी नहीं हैं. राम मंदिर के उद्घाटन में आप दलाई लामा को बुला रहे हैं, लेकिन शंकराचार्य को नहीं बुलाते हैं. आप दलाई लामा को तो महत्व दे रहे हैं, लेकिन शंकराचार्य को नहीं. अविमुक्तेश्वरानंद ने आगे कहा कि आप समझ लीजिए कि आप के महत्व न देने से शंकराचार्य का महत्व कम नहीं हो जाएगा. शंकराचार्य का महत्व अपनी जगह पर है. वह सनातन धर्म को मानने वालों के गुरु हैं और बन रहेंगे.

हिंदुओं को अब पटरी से उतारा जा रहा है

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि अब क्या हो रहा है, वे वेद-शास्त्रों को नहीं मान रहे हैं. गुरुओं का नहीं माना जा रहा है. अब हमारे नेता ही सब कुछ हैं, यह भावना भरकर हिंदुओं को पटरी से उतारा जा रहा है. अब इसका क्या घाटा है, हम अगर राजा को प्रतीक मान भी लें, तो राजा हर वक्त युद्ध में ही होता है, उसके बहुत सारे शत्रु भी होते हैं. अगर किसी युद्ध में राजा पराजित हो जाता है तो फिर हिंदू कहां जाएगा? क्या हिंदू भी पराजित हो जाएगा. यही वजह है कि हमारे पूर्वजों ने सही तरीका अपनाया था. हम राजा को खुद में समाहित नहीं करेंगे. राजा भी हमारी व्यवस्था का एक अंग है. हम अपने जीवन में धर्म को उतारेंगे. हमारा मानना है कि ये जो पद्धति बन गई है कि नेता के सर्कुलर को मान वह हिंदू है, यह बिल्कुल सही नहीं है.

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