नई दिल्ली। सीएए लागू होने के अगले ही दिन इसके खिलाफ मुस्लिम संगठन सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) की ओर से मंगलवार को कहा गया कि ये कानून मुस्लिमों से भेदभाव करता है। याचिका में कहा गया है कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पेडिंग है। ऐसे में केंद्र सरकार को इसे लागू नहीं करना चाहिए था। आईयूएमएल की तरफ से देश की सबसे बड़ी अदालत में दी गई याचिका में सीएए को असंवैधानिक बताया गया है। मुस्लिम संगठन ने इस दौरान सीएए पर स्टे लगाने की मांग की है।
सीएए लागू किए जाने के बाद अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थयों को नागरिकता दी जा सकेगी। सीएए लागू हो जाने के साथ ही मोदी सरकार इन तीन देशों के प्रताड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारत की नागरिकता देना शुरू कर देगी। हालांकि, आम चुनाव 2024 के ठीक पहले इसके ऐलान को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं।
बता दें कि इससे पहले कल (सोमवार) शाम को चार वर्ष के लंबे इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने नागरिकता संसोधन कानून का अमलीजामा दे दिया है. सीएए को साल 2019 में संसद के दोनों सदन से पारित करा लिया गया था. जिसके एक दिन बाद ही राष्ट्रपति ने तीनों बिल को मंजूरी दे दी थी। वहीं मंजूरी मिलने के बाद देशभर में कोरोना का कहर आ जाने के कारण सरकार कानून को लागू नहीं कर पाई थी. वहीं तीनों बिल के पास हो जाने के बाद मुस्लिम समाज ने जमकर सीएए का विरोध किया था.
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