नई दिल्ली. देश में अपराध का चेहरा बेशक डरावना है लेकिन कहीं न कहीं उसे रोकने के लिए नायक भी दुनिया के सामने आते रहे हैं. दरअसल देश में अपराध रोकने के लिए कई पुलिस अफसरों ने मिसाल पेश की है. ऐसे ही एक आईपीएस अधिकारी का नाम है विजय कुमार. कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन का एनकाउंटर करने वाले के. विजय कुमार किसी फिल्म के नहीं बल्कि रियल जिंदगी के सिंघम हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस बहादुर अफसर की अनसुनी दास्तान.
साल 1975 में तमिलनाडु कैडर में आईपीएस बनें विजय कुमार का जन्म 15 सितंबर 1950 को हुआ था. विजय कुमार के पिता कृष्णन नायर एक रिटायर्ड पुलिस अफसर थे. विजय कुमार ने सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से ग्रैजुएशन किया, जिसके बाद पोस्ट ग्रैजुएशन मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पूरा किया था.
विजय कुमार बचपन से ही अपने पिता से प्रेरित थे और उन्हीं की तरह पुलिस अफसर बनना चाहते थे. साल 1975 में विजय कुमार तमिलनाडु कैडर में आईपीएस बनें जिसके बाद इन्होंने स्पेशल सिक्युरिटी ग्रुप में सर्विस की.
जब विजय कुमार स्पेशल टास्क फोर्स में तैनात थे तो उन्हें कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन को मारने का जिम्मा सौंपा गया. उस दौर में वीरप्पन को खौफ का दूसरा नाम कहा जाता था.
विजय कुमार ने सालों तक वीरप्पन की तलाश की. उन्होंने ऑपरेशन ‘कोकून’ का भी नेतृत्व किया. उसी दौरान विजय कुमार ने मंदिर में कसम खाई की जब तक वे विरप्पन को नहीं पकड़ लेते अपने बाल नहीं मुड़वाएंगे.
18 अक्टूबर 2004 में विजय कुमार ने टीम के साथ मिलकर तमिलनाडु के धरमपुरी जंगल में वीरप्पन को मार गिराया.विजय कुमार की बहादुरी ने देश के सभी पुलिस अधिकारियों के लिए एक मिसाल पेश की थी.
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