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बंधुआ मजदूरों का हाल: 500 रुपये के लिए करनी पड़ी 3 महीने मजदूरी, मां के क्रियाकर्म के लिए मिले 100 रुपये

कर्नाटक में एक एनजीओ की पहल पर पुलिस ने 32 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया. इनमें एक व्यक्ति सिर्फ 500 रुपये के कर्ज की वजह से तीन महीने से बंधुआ था. मुक्त कराए गए मजदूरों की दास्तान सुनकर आप दंग रह जाएंगे.

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  • March 11, 2018 7:14 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. भारत में बंधुआ मजदूरी एक बड़ी समस्या है. झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा जैसे राज्यों में यह समस्या बहुत ज्यादा है. यहां लोग मजदूरी के लिए इतनी छोटी सी रकम में सालों तक बंधुआ बन जाते हैं कि आप सोच भी नहीं सकते. लंबी गाड़ियों में चलने वाले स्थानीय ठेकेदार लोगों को अच्छी मजदूरी देने के का लालच देकर दूर दराज क्षेत्रों में ले जाते हैं और वहां उनके शोषण का ऐसा जाल बुना जाता है कि आप सोच भी नहीं सकते. ताजा मामला कर्नाटक से सामने आया है. यहां एक एनजीओ की पहल पर पुलिस ने ऐसे लोगों को मुक्त कराया जो कि सिर्फ 500 रुपये का कर्ज चुकाने के लिए तीन महीने से बंधुआ बने हुए थे.

एक गैर लाभकारी संस्था सस्टेनेबल डेवलपमेंट चलाने वाले पीएच वासुदेव की करीब छह महीने की कोशिश के बाद पुलिस ने कर्नाटक में निपानी और मुधोल के बीच सड़क निर्माण में लगे 32 मजदूरों को मुक्त कराया. इनमें 22 पुरुष और 10 महिलाएं हैं. ये सभी बंधुवा मजदूर थे जो तेलंगाना के आदिवासी थे. उप ठेकेदार ने मामूली से कर्ज के चलते उन्हें लंबे समय से बंधुआ बनाया हुआ था. पुलिस ने इन्हें बंधुआ बनाने वाले और सप्लाई करने वाले ठेकेदारों को गिरफ्तार कर लिया है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इन सभी 32 मजदूरों ने कुल मिलाकर 60 हजार रुपया लिया था जो कि प्रति व्यक्ति 2000 भी नहीं होता. ठेकेदार ने उन्हें काम के बदले 3,500 रुपये महीने तनख्वाह देने का वादा किय, लेकिन एक भी पाई नहीं दी. इनमें एक मजदूर का मामला तो ऐसा था कि उसने सिर्फ 500 रुपये का कर्ज लिया था और इसके लिए उसे इन बुरी परिस्थितियों में तीन महीने काम करना पड़ा. एक मजदूर की मां का निधन हो गया तो उसे ठेकेदार ने घर ही नहीं जाने दिया और सिर्फ 100 रुपये देकर कहा कि वह साइट पर ही अपनी मां का क्रिया कर्म कर ले. उसकी मां का अंतिम संस्कार रिश्तेदारों ने कराया. रिहाई के वक्त वह फूट फूटकर रोने लगा.

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