अगरतला. 3 नॉर्थ ईस्ट राज्यों में हुए चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए खुशखबरी लेकर आए हैं. भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा के 25 साल से मुख्यमंत्री माणिक सरकार के मुकाबले 19 सीटें ज्यादा जीती हैं. भाजपा ने त्रिपुरा में पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल की है. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी ने मात्र 0.3% प्रतिशत से माणिक सरकार की पार्टी सीपीएम को हराया है. दोनों पार्टियों के बीच बहुत कम प्रतिशत वोटों का अंतर रहा है. बीजेपी की इस जीत पर गौर करने वाली बात है कि कैसे बीजेपी ने इतने कम वोट परसेंट के साथ इतनी बड़ी जीत हासिल की. आइए हम आपको बताते हैं बीजेपी की बंपर जीत और मणिक सरकार की हार के 10 बड़े कारण.
1- बीजेपी ने त्रिपुरा में शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है. जहां 2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के पास राज्य में एक भी सीट नहीं थी, वहीं इस बार मोदी मैजिक के चलते बीजेपी को राज्य में 35 सीटें मिली है. बीजेपी को कुल वोटिंग पर्सेंटेज का 43 फीसदी वोट मिले हैं. वहीं अगर 2013 की बात करें तो तब बीजेपी को केवल 1.5 फीसदी वोट ही मिले थे. तो वोट शेयर का 1.5 फीसदी से 43 प्रतिशत तक पहुंचना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ.
2- त्रिपुरा में सीपीएम को जनता का वोट तो मिले लेकिन वो रिजल्ट में तब्दील नहीं हो सके. सीपीएम को कुल वोटिंग पर्सेंटेज का 42.7 फीसदी वोट मिले. जोकि बीजेपी से केवल 0.3 फीसदी ही कम है लेकिन बावजूद इसके लेफ्ट का वोटिंग पर्सेंटेज रिजल्ट में कन्वर्ट नहीं हो सका.
3. बीजेपी की कम वोट प्रतिशत के बावजूद इस बड़ी जीत का तीसरा कारण ये है कि भाजपा ने त्रिपुरा ने अपनी जान फूंक दी थी. महीने भर पहले से भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने वहां का दौरा किया और त्रिपुरावासियों से खुद को जोड़ा.
4. जनता से जुड़ाव में पिछड़ी कांग्रेस : कांग्रेस ने चुनावों से पहले अपनी पकड़ जनता के बीच बनाने में नाकामयाब रही. पार्टी के नेताओं ने वहां न तो रैलियां की और न ही त्रिपुरा में ग्रो कर पाई.
5. बीजेपी का तड़गा कैंपेन : भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा में 2013 के बाद से ही अपनी हार से सीख लिया था कि कैसे उसे अपनी पकड़ को त्रिपुरा में मजबूत करना है. नॉर्थ ईस्ट स्टेट्स में बीजेप ने असम में जब जान फूंकी तो उसका परिणाम भी जीत ही हुई थी तब असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल बनें. इसी तरह असम के बाद बीजेपी ने सतही लेवल पर काम करना शुरू कर दिया. इसी के साथ आरएसएस की रैलियों का भी बीजेपी को फायदा मिले.
6. पे कमीशन न लागू करने से जनता नाराज : चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई दफा दोहराया था कि उनकी सरकार के बनते ही वो 7वां वेतन आयोग लागू करेंगे. बता दें त्रिपूरा देश में इकलौता ऐसा राज्य है जहां 7th पे कमीशन लागू नहीं है. अभी भी वहां स्टेट गवर्मेंट इम्पलॉय को चौथे वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत वेतन दिया जा रहा है. त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में इस फैसले 1.1 लाख लोग प्रभावित हैं. जिनमें माणिक सरकार से खासा नराजगी थी.
7. मौजूदा सरकार से आजिज़ आ गई थी जनता : त्रिपुरा में 25 सालों से वामपंथी सरकार के प्रति जनता का आकर्षक कम होने लगा था. जिसका नतीजा चुनावों के रिजल्ट पर दिखा. माणिक सरकार साफ छवि और बेहतरीन छवि वाले मुख्यमंत्री में से एक सीएम माने जाते हैं, इसीलिए बीजेपी ने जीत तो दर्ज की लेकिन कम वोट प्रतिशत के साथ.
8. सुनील देवधर, बीजेपी के ट्रंप कार्ड : 25 सालों के बाद सीपीआई (एम) सत्ता से बाहर हो रही है. इसका श्रेय दिया जा रहा है एक मराठा सुनील देवधर को. सुनील देवधर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से लंबे समय से जुड़े रहे हैं. सुनील देवधर ने पूर्वोत्तर राज्य खासकर त्रिपुरा में बीजेपी के लिए जमकर पसीना बहाया है. सुनील देवधर का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था. हालांकि इन्होंने कभी चुनाव तो नहीं लड़ा, लेकिन चुनाव के दौरान बीजेपी के लिए महत्ती भूमिका निभाई. पिछले कई सालों से उन्होंने त्रिपुरा में अपनी पार्टी के लिए काम किया.
9. कांग्रेस ने अपने खेमे का नहीं रखा ख्याल : 2013 में कांग्रेस के 10 विधायकों ने जीत दर्ज की. लेकिन इनमें से छह पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे. इसके बाद बीते अगस्त में वे भाजपा में आ गए. वहीं 2017 में रतनलाल भी भाजपा में शामिल हो गए. ये वो गतिवधियां रही जिन पर कांग्रेस ने ध्यान न देकर अपनी जमीन कमजोर की. जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला.
10. BJP Vs CPM : त्रिपुरा में 59 सीट पर चुनाव हुआ. हालांकि एक सीट पर उम्मीदवार का निधन होने की वजह से चुनाव नहीं हुआ.
पार्टी 2018 के परिणाम 2013 में सीटें फायदा/नुकसान 2013 में वोट शेयर 2018 में वोट शेयर
सीपीएम 16 49 -33 48.1% 42.7%
कांग्रेस 00 10 -10 36.5% 1.8%
बीजेपी 35 00 +35 1.5% 43.0%
आईपीएफटी 08 00 +8 0.3% 7.5%
(बीजेपी अलायंस)
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