बुलंदशहर. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बीजेपी ने उम्मीदवारों की चौथी लिस्ट जारी कर दी है. उत्तर प्रदेश की बुलंदशहर लोकसभा सीट से भाजपा के बड़े दलित चेहरे और वर्तमान सांसद भोला सिंह फिर से चुनावी मैदान में उतरेंगे. भाजपा का गढ़ रही बुलंदशहर सीट से साल 2004 में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी जीत हासिल कर चुके हैं. बीजेपी के भोला सिंह को टक्कर देने के लिए राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी ने पूर्व विधायक बंसी सिंह पहाड़िया को टिकट दिया है, वहीं सपा-बसपा और रालोद गठबंधन से योगेश वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है.
हाल ही में बुलंदशहर आलमी तबलीगी इज्जेतमा और स्याना हत्याकांड के लिए काफी चर्चा में रहा. ये वही स्याना हिंसा कांड है जिसमें शहीद एसएचओ सुबोध कुमार सिंह की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. इस हिंसा का मुख्य आरोपी बजरंग दल जिला संयोजक को बनाया गया. गौकशी के मामले को लेकर भड़की इस हिंसा ने समाज में एक गलत संदेश पहुंचाया. हो सकता है इसका कुछ गलत प्रभाव बीजेपी वोट बैंक पर भी पड़े. हालांकि नतीजों से पहले कुछ भी कहना गलत होगा लेकिन ये कारण बुलंदशहर में भाजपा की हार का कारण बन सकता है.
स्याना हिंसा कांड न ले डूबे भाजपा की नैया
3 दिसंबर 2018 को बुलंदशहर में जब लाखों की तादाद में मुस्लिम समुदाय के लोग तीन दिवसीय आलमी तबलीगी इज्जेतमा में मौजूद थे. उस दौरान जिले के स्याना कोतवाली के चिंगरावठी क्षेत्र में गौकशी के नाम पर हिंसा फैल गई जिसमें एसएचओ सुबोध कुमार सिंह शहीद हो गए.
स्याना हिंसा का मुख्य आरोपी बजरंग दल के जिला संयोजक योगेश को बताया गया, जो बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. स्याना इलाके में हुई घटना ने स्थानीय लोगों के मन में खौफ पैदा कर दिया. काफी संख्या में स्थानीय लोगों ने इसका विरोध भी किया. इसका असर अगर चुनाव में पड़ा तो सीधा नुकसान बीजेपी झेलना पड़ सकता है.
सपा-बसपा गठबंधन से मिल सकता है बीजेपी को नुकसान
साल 2014 चुनाव में आई मोदी लहर में जीत दर्ज करने वाले भोला सिंह का इस बार महागठबंधन से कड़ा मुकाबला रहेगा. इतना ही नहीं, इस बार चुनाव में अगर बुलंदशहर सीट पर अगर दलित, मुस्लिम, जाट, यादव फॉर्मुला चल गया तो बीजेपी सासंद की वापसी की डगर मुश्किल हो सकती है. साल 2009 लोकसभा चुनाव में बुंलदशहर से सपा को जीत मिल चुकी है. इलाके सपा का काफी अच्छा प्रभाव माना जाता है. हालांकि, क्षेत्र में भोला सिंह भी एक बड़े दलित चेहरा है, जिसका नुकसान अखिलेश यादव, मायावती और अजीत सिंह के महागठबंधन को मिल सकता है.
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