BJP JDU Alliance in Bihar: विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र की शिवसेना-बीजेपी के बाद अब बिहार की भाजपा और जेडीयू में बड़ा और छोटा भाई का खेल शुरू

BJP JDU Alliance in Bihar: महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बाद अब बिहार की राजनीति में भी बड़ा भाई और छोटा भाई का खेल शुरू हो गया है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने मुख्यमंत्री और जेडीयू की नीतीश कुमार को सलाह दी है कि अब वह भाजपा को बड़ा भाई मान लें वरना 2020 का विधानसभा चुनाव भी हार जाएंगे.

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BJP JDU Alliance in Bihar: विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र की शिवसेना-बीजेपी के बाद अब बिहार की भाजपा और जेडीयू में बड़ा और छोटा भाई का खेल शुरू

Aanchal Pandey

  • October 10, 2019 7:48 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

पटना. महाराष्ट्र के बाद अब बिहार की राजनीति में भी बड़ा भाई और छोटा भाई का खेल शुरू हो गया है. भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सलाह दी है कि अब वह भाजपा को बड़ा भाई मान लें वरना 2020 का विधानसभा चुनाव भी हार जाएंगे. हालांकि इस तरह की बातें 2019 के लोकसभा चुनाव से ही शुरू हो गई थी लेकिन बिहार की राजनीति में स्वामी का इस तरह से कूदना थोड़ा अचंभित करने वाला जरूर है. स्वामी का यह ताजा बयान पटना में विजयादशवीं के दिन रावण वध कार्यक्रम से भाजपा नेताओं व मंत्रियों द्वारा बनाई गई दूरियों के बाद जेडीयू नेताओं की टिप्पणियों पर पलटवार के रूप में देखा जा रहा है.

आपको याद होगा 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और शिवसेना के बीच बड़ा भाई और छोटा भाई बनने को लेकर तकरार इस हद तक हो गई थी कि दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था और फिर जब जनादेश आया तो शिवसेना ने सिर झुकाकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई. ये अलग बात थी कि दोनों दल बहुमत हासिल नहीं कर पाए थे लेकिन सीटों और वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा शिवसेना से काफी आगे निकल गई. वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा को 2014 के चुनाव में 27.81 प्रतिशत और शिवसेना को 19.35 प्रतिशत वोट मिले.

भाजपा ने 260 सीटों पर चुनाव लड़कर 122 सीटें जीती जबकि 282 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने वाली शिवसेना के सिर्फ 63 विधायक ही जीत सके. यह काफी अहम है कि इस स्थिति में आने में भाजपा को तीन दशक का सफर तय करना पड़ा. इस चुनाव में मिली सफलता के बाद भाजपा का आत्मविश्वास और प्रबल हो गया. फिर तय किया गया कि ऐसे तमाम राज्य जहां स्थानीय क्षत्रपों से गठबंधन कर भाजपा चुनाव लड़ती है वहां उन्हें कमजोर करने की रणनीति बनाई जाए. यही रणनीति जम्मू कश्मीर में पीडीपी को लेकर अपनाई गई. आंध्र प्रदेश में हालांकि टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू पहले ही इस तिकड़म को समझ गए थे लेकिन, अलगाव के बाद भी उन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान भुगतना पड़ा. सत्ता तक गंवानी पड़ी. अब निशाने पर बिहार में नीतीश की जेडीयू है.

दरअसल, बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में होने वाले दशहरा समारोह (रावण वध कार्यक्रम) में हिस्सा नहीं लिया. इस कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुख्य अतिथि थे. खास बात यह रही कि पूरे कार्यक्रम के दौरान उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के लिए जो कुर्सी लगाई गई थी वह खाली रहीय इसके बाद इस तरह के कयास लगने शुरू हो गए कि बिहार की राजनीति पर संकट के बादल घुमरने लगे हैं. राज-नीतीश डेंजर जोन में आ गई है.

इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर जेडीयू के बागी नेता अजय आलोक ने ट्वीट किया और पूछा, क्या हो गया बिहार बीजेपी? कोई गांधी मैदान में रावण वध में नहीं आया? रावण वध नहीं करना था क्या? इससे पहले पूरा बिहार जब बाढ़ और जल प्रलय के चपेट में था तब बेगूसराय से भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने राज-नीतीश पर करारा प्रहार किया था और आपदा राहत को लेकर सरकारी मशीनरी को कठघरे में खड़ा किया था. इसपर प्रदेश के मंत्री अशोक चौधरी समेत कई जेडीयू नेताओं ने गिरिराज पर पलटवार किया था. कहने का मतलब यह कि भाजपा-जेडीयू की गठबंधन सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.

स्वामी के ताजा बयान पर गौर करें तो पक्के तौर पर यह बात निकलकर आती है कि राज-नीतीश को लेकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कुछ अलग तरीके से सोच रहा है. स्वामी ने कहा कि अगर जेडीयू को बिहार में अपनी राजनीति बचानी है तो उसे छोटे भाई की भूमिका में रहना होगा. देशभर में लोग भाजपा को पसंद कर रहे हैं और इस लहर के बीच बिहार में भी अब भाजपा बड़े भाई की भूमिका में है. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार को अगर 2020 का चुनाव जीतना है तो उन्हें भाजपा के साथ छोटे भाई की भूमिका में रहना होगा.

स्वामी ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार को पता करना चाहिए कि भाजपा के नेता किन कारणों से नाराज हैं. गिरिराज सिंह के बयान का भी समर्थन करते हुए स्वामी ने कहा कि वह स्पष्टवादी नेता हैं. उन्होंने कहा कि बिहार में बाढ़ के दौरान नीतीश कुमार की खासी आलोचना हुई है. प्रतिकूल हालातों को देखते हुए दोनों दलों में दूरियां जरूर बढ़ी है. शायद इसी को देखते हुए दशहरा के दौरान पार्टी के नेता शामिल नहीं हुए होंगे. इस तरह से स्वामी ने बिहार में भाजपा और जेडीयू के बीच बढ़ते मतभेद को लेकर जो बुनियादी बातें की हैं वह निश्चित रूप से आने वाले वक्त में अलगाव का रास्ता अख्तियार करेगी.

भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह जब इस तरह की कोई चाल चलते हैं तो तय मानिए कि उन्होंने अगले चुनाव के लिए पूरा रोडमैप तैयार कर लिया होगा. नीतीश कुमार की घेरेबंदी का पूरा इंतजाम कर लिया होगा. इसके बाद सही वक्त पर जेडीयू को शर्तों के घेरे में लाने की कोशिश की जाएगी. मान गए तो ठीक वरना गठबंधन खत्म. तब तक नीतीश इस हाल में नहीं होंगे कि लालू की आरजेडी या कांग्रेस से कोई तालमेल कर सकें. ऐसे भी लालू जब से जेल गए हैं आरजेडी की हालत लगातार पतली ही होती गई है. और नीतीश के बारे में यह सर्वविदित है कि वह बिहार की राजनीति में अकेले दम पर कुछ भी नहीं कर पाएंगे. बस, नीतीश की इसी राजनीतिक कमजोरी का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश में भाजपा जुगत भिड़ा रही है.

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