नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम समय बचा हुआ है. बीजेपी का विरोध करने वाली पार्टियां एकजुट होने की कोशिश कर रही है. 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक पटना में होने वाली है. लोकसभा चुनाव में यदि बीजेपी और कांग्रेस की बात की जाए तो जैसे-जैसे ये […]
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव होने में एक साल से भी कम समय बचा हुआ है. बीजेपी का विरोध करने वाली पार्टियां एकजुट होने की कोशिश कर रही है. 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक पटना में होने वाली है. लोकसभा चुनाव में यदि बीजेपी और कांग्रेस की बात की जाए तो जैसे-जैसे ये पार्टियां बढ़िया प्रदर्शन करती है वैसे-वैसे छोटी पार्टियां सिमटती जाती है.
देश की क्षेत्रीय स्तर की जितनी भी पार्टियां है ये 1990 के आसपास अस्तित्व में आई. उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा , बिहार में जेडीयू और आरजेडी, पश्चिम बंगाल में टीएमसी, तमितनाडु में एआईएडीएमके और डीएमके, कर्नाटक में जेडीएस, तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति के अलावा देश के कई अन्य राज्यों में छोटी पार्टियों का दबदबा है.
उत्तर प्रदेश में बसपा का दबदबा था. बसपा की मुखिया मायावती हैं वे कई बार उत्तर प्रदेश की सीएम भी रह चुकी है लेकिन पिछले साल यानी 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा था. वहीं समाजवादी पार्टी को 111 सीटों पर संतोष करना पड़ा था वहीं बीजेपी ने 250 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं 2019 लोकसभा चुनाव की बात करे तो बीजेपी को 60 से अधिक सीटों पर जीत मिली थी. उत्तर प्रदेश में बीजेपी का जनाधार बढ़ने से सपा और बसपा पर अस्तित्व का संकट आ गया है.
पिछले महीने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आए जिसमें कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला. वहीं पिछली हुए विधानसभा चुनाव में जेडीएस ने बढ़िया प्रदर्शन किया था लेकिन कांग्रेस ने इस बार विधानसभा चुनाव में लगभग 40 प्रतिशत वोट हासिल किए जिसके बाद जेडीएस का किला ढह गया.
महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) लगातर कमजोर हो रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 105 सीट तो शिवसेना 56 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं 2009 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 46 और शिवसेना को 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
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