पटना: बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर NDA में आज सीट बंटवारा हो गया. जिसके अनुसार, भाजपा 17 और जेडीयू 16 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसके साथ ही चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को 5 सीटें दी गई हैं. वहीं, जीतनराम मांझी की ‘हम’ और उपेंद्र कुशवाहा को 1-1 सीट मिली है. […]
पटना: बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर NDA में आज सीट बंटवारा हो गया. जिसके अनुसार, भाजपा 17 और जेडीयू 16 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसके साथ ही चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को 5 सीटें दी गई हैं. वहीं, जीतनराम मांझी की ‘हम’ और उपेंद्र कुशवाहा को 1-1 सीट मिली है. एनडीए की सीट शेयरिंग में केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को कोई जगह नहीं दी गई है. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अनुभवी चाचा की जगह पर अब युवा भतीजे को तरजीह दी है.
आइए समझते हैं कि बीजेपी आलाकमान ने पशुपति पारस की जगह चिराग पासवान को एलजेपी की सीटें देने का फैसला क्यों लिया…
बता दें कि एलजेपी संस्थापक राम विलास पासवान के निधन के बाद जब पार्टी पर कब्जे की लड़ाई शुरू हुई थी, तब चाचा पशुपति भतीजे चिराग पर भारी पड़े थे. एलजेपी के 6 में से 5 सांसद पशुपति के खेमे में ही दिखाई दिए. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने भी राम विलास पासवान की खाली हुई जगह पर पशुपति पारस को केंद्रीय मंत्री बनाया. हालांकि अलग-थलग पड़े चिराग ने हार नहीं मानी और वो सीधे जनता के पास गए. लगातार रैलियों और रोड शो के जरिए चिराग ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर मजबूत दावा ठोंका. उनकी सभाओं में उमड़ती भारी भीड़ ने बीजेपी को अपने फैसले पर फिर से सोचने पर मजबूर किया. यही वजह है कि जब लोकसभा चुनाव के सीट बंटवारे की बात आई तब बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने 71 वर्षीय पशुपति पारस की जगह 41 साल के युवा चिराग पासवान पर दांव खेला.
रामविलास पासवान के बाद लोजपा दो हिस्सों में बंट गई. एक की कमान केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के हाथ में थी, जिसमें 5 सांसद थे. वहीं, चिराग की लोजपा मे वो इकलौते सांसद थे. हालांकि रामविलास पासवान के जमीनी समर्थक चिराग पासवान के साथ ही दिखाई दिए. एलजेपी का मूल काडर को चिराग पासवान के अंदर ही उनके पिता की झलक दिखाई दी. पशुपति और उनकी पार्टी भले ही दिल्ली की नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल थी, लेकिन हाजीपुर, वैशाली, समस्तीपुर और जमुई जैसे लोजपा के गढ़ वाले इलाकों में चिराग का ही बोलबाला बना रहा. उन्हें लोगों की सहानुभूति मिली. टीवी मीडिया, अखबार और सोशल मीडिया पर भी चिराग को चाचा पशुपति से ज्यादा जगह मिली. भाजपा के चिराग पर भरोसा जताने के पीछे ये सब वजहें भी शामिल रहीं.
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