नई दिल्ली. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीन नामचीन हस्तियों को भारत रत्न देने का ऐलान किया है. इसमें प्रसिद्ध गायक भूपेन हजारिका का नाम भी शामिल है. उनके साथ-साथ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और नानाजी देशमुख को भी भारत रत्न दिया जाना है. भूपेन हाजारिका को यह सम्मान मरणोपरांत दिया जा रहा है. भूपेन हजारिका का जन्म असम के सादिया आठ सितंबर, 1926 में हुआ था. भूपेन दा के नाम से मशहूर भूपेन हजारिका प्रसिद्ध संगीतकार थे. एक संगीतकार के साथ भूपेन दा कवि, फिल्म निर्माता और असम की कला संस्कृति के अच्छे जानकार भी थे.
- भूपेन हजारिका की प्रारंभिक शिक्षा असम में ही हुई. साल 1942 में गुवाहाटी से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 1944 में स्नातक और 1946 में राजनीति शास्त्र में एमए किया. कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद भूपेन दा ने आकाशवाणी में नौकरी शुरू की. इस दौरान स्कॉलरशिप मिलने पर वे अमेरिका चले गए. यहां कोलम्बिया विश्वविद्यालय से उन्होंने मास कम्युनिकेशन में पीएचडी की. बचपन से संगीत में रुचि रखने वाले भूपेन दा के लिए उनकी जिंदगी का यह दौर काफी निर्णायक था. इस दौरान उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता रॉबर्ट स्टेंस और रॉबर्ट जोसेफ से हुई और उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियों को बढ़े ध्यान से सीखा. इसके बाद शिकागो विश्वविद्यालय से उन्हें लोकसंगीत में अध्यनन के लिए फैलेशिप भी मिली.
- लोकसंगीत से भूपेन हजारिका का काफी जुड़ाव रहा है. वे अमेरिकी लोकगायक पॉल रॉबसन बड़े प्रशंसक थे. जानकारों का तो यहां तक मानना है कि उनकी आवाज पॉल रॉबसन से मेल खाती थी. पॉल रॉबसन की पहचान अमेरिका में अश्वेतों के अधिकारों के लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर होती है. उनके प्रसिद्ध गीत ‘ओल्ड रिवर मैन’ की तर्ज पर भूपेन दा ने असमिया में ब्रह्मापुत्र नदी के लिए ‘मनुहे मनुहर बाबे’ और उन्हीं से प्रेरित हो कर गंगा की महानता और विवशता बताने वाला हिंदी गीत ‘ओ गंगा बहती हो क्यों’ की रचना की थी.
- इस महान गायक की बॉलीवुड फिल्मों में शुरुआत साल 1974 में फिल्म ‘आरोप’ से होती है. इस फिल्म का एक गाना ‘नैनों में दर्पण है, दर्पण है कोई देखूं जिसे सुबह-ओ-शाम’ ने काफी लोकप्रियता हासिल की थी. इसके बाद उन्हें फिल्म निर्देशन में भी हाथ आजमाया साल 1976 में भूपेन दा के निर्देशन में फिल्म ‘मेरा धरम मेरा देश’ आई. इसके बाद भूपेन दा ने कई फिल्मों में अपना अमर संगीत दिया और कई फिल्मों का निर्देशन भी किया. लेकिन भूपेन दा का सबसे चर्चित गाना साल 1994 में आई फिल्म ‘रुदाली’ का दिल हूम-हूम करे था. यह गाना उनके असमिया गीत ‘बुकु हुम हुम करे’ का हिंदी रूपांतरण था.
- भूपेन दा की छवि अखिल भारतीय लोक गायक की थी.भारत पुरस्कार से पहले साल 1992 में फिल्म और संगीत के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट काम के लिए उन्हें साल 1992 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 1977 में पद्मश्री, 2001 में पद्म भूषण और साल 2012 में मरणोपरांत पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था. इसके साथ ही साल 2008 में उनके संगीत के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. लंबी बीमारी के चलते सुरों का यह बादशाह अपने अमर संगीत को हम सबके बीच छोड़ पांच नवंबर, साल 2011 को इस दुनिया से रुखसत हो गए थे.
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