Bhima Koregaon violence History: महाराष्ट्र के पुणे में स्थित भीमा कोरेगांव में प्रत्येक साल बड़ा सम्मेलन आयोजित होता है. इस सम्मेलन में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते है. पिछले साल आयोजित हुए सम्मेलन में हिंसा भड़क उठी थी. जिसके अनुभव से इस बार सरकार सचेत है.
पुणे. भीमा कोरेगांव हिंसा का एक साल पूरा होने वाला है. एक जनवरी 2018 को हुए इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. जबकि कई सार्वजनिक और निजी संपतियों को नुकसान पहुंचाया गया था. इस हिंसा को दलित बनाम सवर्ण लड़ाई के तौर पर बताया जाता है. प्रत्येक साल भीमा कोरगांव में आयोजित होने वाले सम्मेलन में इस बार कोई हिंसक घटना नहीं हो इसके लिए सरकार पूरी तरह से सचेत है. सैकड़ों की संख्या में पुलिस की तैनाती की गई है.
पुणे के पास भीमा कोरेगांव को मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए 200 साल पुराने युद्ध के लिए जाना जाता है. इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठा सेना को हरा दिया था. मराठा सेना में ज्यादातर मराठा ब्राह्मण थे. जबकि ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में महार जाति के सैनिकों की संख्या ज्यादा थी. मान्यता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत में महार रेजीमेंट ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
भीमा कोरेगांव युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत को मराठा पेशवाओं पर महार (दलित) की जीत के रूप में माना जाता है. प्रत्येक साल भीमा कोरेगांव में सम्मेलन होता है. जहां लाखों की संख्या में दलित पहुंचते है. कई दलित नेता इस सम्मेलन में अपना संबोधन देते है. भीमराव आंबडेकर भी प्रत्येक साल भीमा कोरेगांव सम्मेलन में शामिल हुआ करते थे. इस साल भी भीमा कोरेगांव में आयोजित होने वाले सम्मेलन में कई बड़े दलित नेता के पहुंचने वाले हैं.
पिछले साल भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह के मौके पर ‘भीमा कोरेगांव शोर्य दिन प्रेरणा अभियान’ के सम्मेलन आयोजित हुआ था. जिसमें कई संगठन शामिल हुए थे. एल्गर परिषद के नाम से निकाली गई रैली में हिंसा भड़क गई थी. इस साल भी भीमा कोरेगांव में सम्मेलन आयोजित होने वाला है. संभावना है कि इस सम्मेलन में छह से सात लाख लोग शामिल होंगे. किसी भी प्रकार की संभावित हिंसक घटना से बचने के लिए महाराष्ट्र प्रशासन अपनी ओर से सचेत है.