भीमा कोरेगांव हिंसा: दिल्ली हाई कोर्ट ने खत्म की माओवादी शुभचिंतक गौतम नवलखा की नजरबंदी, ट्रांजिट रिमांड भी रद्द

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने देशव्यापी छापेमारी की थी, जिसके बाद 28 अगस्त को माओवादियों से कथित संपर्क होने के आरोप में 5 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिसमें गौतम नवलखा भी शामिल थे. दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को गौतम नवलखा को राहत देते हुए उनकी नजरबंदी खत्म कर दी.

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भीमा कोरेगांव हिंसा: दिल्ली हाई कोर्ट ने खत्म की माओवादी शुभचिंतक गौतम नवलखा की नजरबंदी, ट्रांजिट रिमांड भी रद्द

Aanchal Pandey

  • October 1, 2018 5:23 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली: भीमा-कोरेगांव मामले में नजरबंद माओवादी शुभचिंतक गौतम नवलखा को दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को राहत दी. कोर्ट ने उन्हें नजरबंदी से रिहा करते हुए ट्रांजिट रिमांड को भी रद्द कर दिया. प्रतिबंधित माओवादी संगठनों के साथ कथित तौर पर संपर्क होने को लेकर महाराष्ट्र पुलिस ने देशव्यापी छापेमारी के बाद 28 अगस्त को 5 माओवादी शुभचिंतकों को गिरफ्तार कर लिया था. इन्हीं 5 लोगों में गौतम नवलखा भी शामिल थे. अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को उन्हें पुणे न ले जाने का आदेश देते हुए नजरबंद करने को कहा. सोमवार शाम दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस को जो ट्रांजिट रिमांड निचली अदालत से नवलखा को हिरासत में रखने के लिए मिली थी वह अरक्षणीय है क्योंकि यह कानून और संविधान की जरूरतों को पूरा नहीं करता.

बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद आया है, जिसमें उसने पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था. कोर्ट ने पुणे पुलिस को जांच आगे बढ़ाने की इजाजत देते हुए विशेष जांच दल(एसआईटी) गठित करने से भी इंकार कर दिया था. साथ ही गौतम नवलखा के अलावा वामपंथी कार्यकर्ता कवि वरवर राव, वरनन गोंजालविस अरुण फरेरा और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की नजरबंदी चार हफ्तों के लिए बढ़ा दी थी. 

न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की तरफ से भी बहुमत के फैसले को पढ़ते हुए कहा था, पीठ के समक्ष पेश दस्तावेजों के अधार पर यह केवल राजनीतिक विचारों में असंतोष या मतभेद की वजह से गिरफ्तारी का मामला नहीं है. वहीं दोनों जजों से उलट जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था कि संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं होगा, अगर पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न की अनुमति बगैर समुचित जांच के दी गई.

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