नई दिल्लीः भीमा कोरेगांव हिंसा और पीएम नरेंद्र मोदी की कथित हत्या की साजिश मामले में पांच माओवादी शुभचिंतकों की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने इस केस में कोर्ट के दखल पर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस तरह के मामलों की सुनवाई करना खतरनाक है. हर बार अगर इस तरह की याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट सुनेगा तो देश में एक खतरनाक प्रिंसिपल सेट हो जाएगा. सरकार की दलील पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि कोर्ट नागरिक अधिकारों के तहत इस मामले को सुन रहा है. स्वतंत्र जांच जैसे मुद्दों पर बाद में चर्चा की जा सकती है. केस की जांच के लिए एसआईटी का भी गठन किया जा सकता है. केस की अगली सुनवाई 19 सितंबर को होगी, तब तक सभी कार्यकर्ता अपने-अपने घरों में ही नजरबंद रहेंगे. 19 सितंबर को केंद्र सरकार केस डायरी और अन्य सबूतों को कोर्ट में पेश करना चाहती है.
सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से कहा गया, ‘देश में नक्सलवाद एक गंभीर समस्या है और इस तरह की याचिकाओं को शीर्ष अदालत में सुना जाएगा तो देश में एक खतरनाक प्रिंसिपल सेट हो जाएगा. क्या संबंधित अदालतें इस तरह के मामलों को नहीं देख सकती? हर मामले को सुप्रीम कोर्ट में ही क्यों सुना जाए?’ सरकार की दलील पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, ‘हम लिबर्टी के आधार पर इस मामले को सुन रहे हैं. स्वतंत्र जांच जैसे मुद्दों पर बाद में चर्चा होगी. हम सिर्फ यह देखना चाहते हैं कि कहीं ये मामला कोड ऑफ क्रिमिनल प्रॉसिजर या आर्टिकल-32 से जुड़ा हुआ तो नहीं है?’
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, ‘इस तरह के सभी मामलों को एक कोर्ट (हाईकोर्ट) में ट्रांसफर कर देते हैं. याचिकाकर्ता केस रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं. अगर उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है तो वह रिहा हो जाएंगे. तब तक हाउस अरेस्ट का अंतरिम आदेश जारी रखा जा सकता है.’ बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वह अदालत की निगरानी में सीबीआई या फिर एनआईए से जांच कराना चाहते हैं.
बताते चलें कि महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले महीने माओवादियों के साथ संबंधों के चलते पी. वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फेरेरा, गौतम नवलखा और वेरनॉन गोन्जाल्विस को गिरफ्तार किया था. अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई की और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए पांचों कार्यकर्ताओं को घरों में नजरबंद रखने के निर्देश दिए. पांचों कार्यकर्ताओं को भीमा-कोरेगांव हिंसा को उकसाने, पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साजिश रचने और माओवादियों के साथ सांठ-गांठ के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. इतिहासकार रोमिला थापर व चार अन्य लोगों की याचिका पर कोर्ट सुनवाई कर रहा है. 19 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई में मोदी सरकार केस डायरी और आरोपियों के खिलाफ अन्य सबूतों को पेश करना चाहती है.
भीमा कोरेगांव हिंसाः 17 सितंबर तक नजरबंद रहेंगे 5 माओवादी शुभचिंतक, सुप्रीम कोर्ट में टली सुनवाई
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