नई दिल्लीः नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ से जुड़े रहे समाजसेवी नानाजी देशमुख और गायक भूपेन हजारिका को भारत रत्न देकर एक साथ कई मायनो में चुनावी दांव चल दिया है. लोग प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने के फैसले को मोदी सरकार की चुनावी रणनीति के तौर पर देख रहे हैं. दरअसल, प्रणब मुखर्जी कांग्रेस से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं और कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री भी रह चुके हैं. ऐसे में उन्हें भारत रत्न देने से जहां कांग्रेस वोट बैंक में भी मोदी सरकार के प्रति सहानुभूति का भाव जगेगा, वहीं कोलकाता में भी लोगों का बीजेपी के प्रति झुकाव बढ़ेगा. खबरें इस तरह की भी चलने लगी हैं कि कहीं प्रणब दा बीजेपी के साथ न जुड़ जाएं.
वहीं मरणोपरांत नानाजी देशमुख को भारत रत्न देकर मोदी सरकार ने आरएसएस के लोगों को साधने की कोशिश की है. दरअसल, नानाजी देशमुख ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई बड़े राज्यों में आरएसएस प्रचारक के रूप में काम किया था. साल 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्होंने मंत्री पद स्वीकार नहीं किया और आजीवन दीनदयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट के अंतर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार के लिए काम करते रहे. वर्ष 1950 में नानाजी ने ही देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर गोरखपुर में शुरू किया था. वहीं, भूपेन हजारिका को मरणोपरांत भारत रत्न देकर मोदी सरकार ने नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को खुश करने की कोशिश की है. सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के इस बड़े फैसले की सराहना हो रही है, वहीं कुछ लोग इसे मोदी सरकार की चुनावी रणनीति बता रहे हैं. प्रणब मुखर्जी ने भारत रत्न मिलने पर खुशी जताई है और लोगों का आभार जताया है.
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