नई दिल्ली: भारत देश में देवी-देवताओं के मंदिर तो बहुत हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में एक मंदिर भारतीय सैनिक का है। मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से लोग शीश नवाने पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस भारतीय सैनिक ने मृत्यु के बाद सेना की नौकरी नहीं छोड़ी थी। ये […]
नई दिल्ली: भारत देश में देवी-देवताओं के मंदिर तो बहुत हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में एक मंदिर भारतीय सैनिक का है। मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से लोग शीश नवाने पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस भारतीय सैनिक ने मृत्यु के बाद सेना की नौकरी नहीं छोड़ी थी। ये बात सुनने में अजीब है लेकिन ये सच है। ये मंदिर सिक्किम की राजधानी गंगटोक में जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच 14 हजार फीट की ऊंचाई पर बना है, जिसके दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं। केवल भारतीय सेना ही नहीं बल्कि चीनी सेना भी उनके सम्मान में शीश नवाती है।
30 अगस्त 1946 को पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के सदराना गांव में जन्मे हरभजन 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के रूप में भर्ती हुए। इसके बाद 1968 में 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में तैनात थे। 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते समय नाथुला पास के समीप उनका पैर फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मौत हो गई। पानी का तेज बहाव के कारण उनका शरीर भी डूब गया।
एक दिन साथी सैनिक के सपने में बाबा हरभजन सिंह आते हैं और वो अपने शरीर के बारे में उसे बताते हैं। तीन दिन बाद उनका शरीर भारतीय सेना को उसी जगह मिलता है। कहा जाता है कि उन्होंने सपने में एक समाधि बनवाने की इच्छा जाहिर की थी, जिसके बाद जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच 14 हजार फीट की ऊंचाई पर उनकी समाधि बनाई गई।
कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भी बाबा हरभजन सिंह अपनी ड्यूटी करते हैं और चीन की सभी गतिविधियों की जानकारी सैनिकों को सपने में आकर देते हैं। उनके प्रति सेना का इतना भरोसा है कि उन्हें बाकी सभी सैनिकों की तरह वेतन, दो महीने की छुट्टी जैसे सारी सुविधाएं दी जाती थी। हालांकि अब वे रिटायर हो चुके हैं।
2 महीने की छुट्टी के दौरान ट्रेन में उनके घर तक की टिकट बुक करवाई जाती है और स्थानीय लोग उनका सामान लेकर उन्हें रेलवे स्टेशन तक छोड़ने जाते हैं। उनके वेतन का एक चौथाई हिस्सा उनकी माँ को भेजा जाता यही। इसके अलावा जब भी नाथुला में भारत और चीन के बीच फ्लैग मीटिंग होती है तो बाबा जी के लिए अलग से कुर्सी भी लगाई जाती है।
बाबा जी के मंदिर में उनकी तस्वीर के साथ उनके जूते और बाकी सामान भी रखे गए हैं। इस मंदिर की चौकीदारी भारतीय सेना के जवान करते हैं और रोज उनके जूते की पोलिश भी करते हैं। सैनिकों का कहना है कि उनके जूतों पर कीचड़ लगा हुआ होता है और उनके बिस्तर में सलवटें होती है।
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