रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई में अब देरी हो सकती है क्योंकि टाइटल सूट से सुप्रीम कोर्ट अब पहले ये फैसला करेगा कि मामले की सुनवाई पांच जजों के संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं. बता दें कि 1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें.
नई दिल्लीः रामजन्मभूमि-बाबरी भूमि विवाद पर सुनवाई में अब एक नया मोड़ आ गया है. जिस कारण से मुख्य जमीनी विवाद पर सुनवाई में देरी हो सकती है. टाइटल सूट से पहले सुप्रीम कोर्ट अब पहले इस पहलू पर फैसला करेगा कि अयोध्या मामले की सुनवाई पांच जजों के संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं. साथ ही कोर्ट पहले ये देखेगा कि क्या संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है इसके बाद ही टाइटल सूट पर विचार होगा.
बता दें कि 1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें. पीठ ने यह भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. वहीं 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था. हाईकोर्ट ने संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर भरोसा जताया था और हिंदुओं के अधिकार पर मान्यता दी थी.
मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश राजीव धवन ने कोर्ट से संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर विचार करने की मांग की. उन्होंने कहा कि उस आदेश ने मुस्लिमों के बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ने के अधिकार को छीन लिया है. चीफ जस्टिस ने कहा कि वो अगली सुनवाई के दिन 23 मार्च को इस मुद्दे पर अपने कानूनी पहलुओं को रखे.
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