Ayodhya Land Dispute Case SC Hearing Day 34 Written Updates: अयोध्या मामले में हुई 34वें दिन की सुनवाई, जानिए मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट, कल भी जारी रहेगी सुनवाई
Ayodhya Land Dispute Case SC Hearing Day 34 Written Updates: अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट रोजाना सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने आज 34वें दिन की सुनवाई शुरू हुई. अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 34 वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ शेखर नाफड़े ने बहस की शुरुआत की. शेखर नाफड़े ने कहा मैं समझता हूं कि कोर्ट पर मामला जल्द से जल्द समय पर खत्म करने का प्रेशर है. माय लार्ड, मैं आज कोर्ट का ज्यादा समय न लेते हुए कोशिश करूंगा कि सारांश में अपनी बात कोर्ट के समक्ष कम समय मे रख दूं. नाफड़े ने कहा मौजूदा मुकदमा और 1885 का मुकदमा, दोनों ही एक जैसे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि 1885 में इन्होंने केवल एक हिस्सा पर अपना दावा ठोंका था और अब ये पूरे विवादित क्षेत्र पर अपने मालिकाना हक का दावा ठोंक रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि क्या इसे स्वीकार्य किया जा सकता है कि 1885 में महंत रघुवर दास का केस सभी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहा था या नहीं? अगर इसका जवाब हां है तो हिन्दू पक्ष दूसरा मुकदमा नही दाखिल कर सकता है रेशजुडीकाटा के आधार पर हाईकोर्ट ने भी रेस ज्यूडी काटा के नियम का ख्याल हाईकोर्ट ने नहीं रखा. बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है.
September 30, 2019 7:37 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago
नई दिल्ली. Ayodhya Land Dispute Case SC Hearing Day 34 Written Updates: अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट रोजाना सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने आज 34वें दिन की सुनवाई शुरू हुई. अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 34 वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ शेखर नाफड़े ने बहस की शुरुआत की. शेखर नाफड़े ने कहा मैं समझता हूं कि कोर्ट पर मामला जल्द से जल्द समय पर खत्म करने का प्रेशर है. माय लार्ड, मैं आज कोर्ट का ज्यादा समय न लेते हुए कोशिश करूंगा कि सारांश में अपनी बात कोर्ट के समक्ष कम समय मे रख दूं. नाफड़े ने कहा मौजूदा मुकदमा और 1885 का मुकदमा, दोनों ही एक जैसे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि 1885 में इन्होंने केवल एक हिस्सा पर अपना दावा ठोंका था और अब ये पूरे विवादित क्षेत्र पर अपने मालिकाना हक का दावा ठोंक रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि क्या इसे स्वीकार्य किया जा सकता है कि 1885 में महंत रघुवर दास का केस सभी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहा था या नहीं? अगर इसका जवाब हां है तो हिन्दू पक्ष दूसरा मुकदमा नही दाखिल कर सकता है रेशजुडीकाटा के आधार पर हाईकोर्ट ने भी रेस ज्यूडी काटा के नियम का ख्याल हाईकोर्ट ने नहीं रखा. बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस संवैधानिक पीठ में जीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस.ए.बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए . नजीर भी शामिल है. यह पूरा विवाद 2.77 एकड़ की जमीन के मालिकाना हक को लेकर है.
जस्टिस भूषण ने कहा परंतु यहां दोनों केस के सब्जेक्ट मैटर में अंतर साफ देखा जा सकता है?
हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए वकील नाफ़ड़े ने कई न्यायिक फैसलों का हवाला दिया और कहा कि रेस ज्यूडी काटा के नियम का ख्याल हाईकोर्ट ने नहीं रखा.
नाफड़े- 1885 में विवादित क्षेत्र में हिंदुओं का प्रवेश केवल बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरा और सीता रसोई तक ही सीमित था. हिन्दू राम चबूतरा को जन्मस्थान कहते थे. बाकी जगह मस्जिद थी, जहां मुस्लिम नमाज अदा करते थे.
नाफड़े ने कहा कि मुस्लिम कब्ज़े का दावा कर सकते है या नही, वहां पर मस्जिद थी और उसको 1885 में चैलेंज नही किया गया था मस्जिद की उपस्तिथि को माना गया था, ज्यूडिशियल कमिश्नर ने रिपोर्ट में साफ कहा था हिन्दू आने अधिकार को बढ़ाना चाहते है.
नाफड़े ने कहा कि रघुबरदास के महंत होने को सभी ने माना और उसको किसी ने भी चैलेंज नही किया था, 1885 का फैसला भी यही कहता है. नाफड़े ने कहा कि सवाल यह नही कोर्ट ने क्या कहा सवाल यह है कि याचिकाकरता ने कोर्ट को क्या बताया, निर्मोही अखाड़ा ने भी उनको महंत माना था.
मुस्लिम पक्षकारों के वकील नाफड़े ने अपनी दलील पूरी हुई. निजाम पाशा नद बहस की शुरुवात की.
पाशा- बाबर जब राज कर रहा था तो वो सम्प्रभु था. किसी के प्रति जवाबदेह नहीं था. कुरान और इस्लामिक कानून के हिसाब से उसने राज किया. विरोधी पक्षकार कह रहे हैं कि बाबर ने मस्जिद बनाकर पाप किया लेकिन हमारा कहना है कि उसने कोई पाप नहीं किया.
जस्टिस बोबड़े- हम यहां बादशाह बाबर के पाप या पुण्य का फैसला करने नहीं बैठे हैं हम तो यहां कानूनी कब्जे के दावे के परीक्षण करने बैठे हैं.
पाशा- निर्मोही का मतलब तो बिना मोह का होता है और वैरागी तो वैराग्य में रहते है फिर उनका मोह और राग कैसा?
याचिका और ऐतिहासिक रिकॉर्ड के मुताबिक 1885 में निर्मोहियों ने इमारत के अंदर घुसकर पूजा और कब्जे की कोशिश की थी. वैरागियों ने रामचबूतरे पर कब्जा कर लिया था.
कोर्ट की ओर से कहा गया की ये तो कानूनी मामला है.
पाशा- बाबर ने जब मस्जिद बनाई तो वो संप्रभु था। उसने सम्प्रभु अधिकार से किया.
पाशा- खंबों पर मिली आकृतियों पर .. ऐसी डिजाइन जो प्रार्थना से ध्यान हटाए उनकी तस्वीरें मस्जिद में मनाही है.
जो काले खंबे मिले हैं उन पर अलग अलग लोगो को अलग अलग आकृतियाँ दिखीं. वो साफ साफ दिख भी नहीं रही हैं. ऐसे चित्रों पर पाबंदी या निषेध या मनाही नहीं मकरूह यानी अनावश्यक है.
इस्लाम मे नमाज़ का समय भी काफी सोच समझ कर तय किया गया है.
मस्जिद के डिजाइन भी कोई फिक्स नहीं है। मीनारो, वजूखाना और मेहराब कमान की भी ज़रूरत नहीं है. कई मस्जिदे बिना मीनार और वज़ूखानो की हैं.
CJI ने कहा कि अयोध्या मामले में समय का ध्यान है। अगर ज़रूरत हुई तो शनिवार को भी सुनवाई करेंगे.
इसी बीच रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट में कहा हम मध्यस्थता में भाग नहीं लेंगे. विराजमान के वकीलों ने कहा कि वे मध्यस्थता नहीं चाहते. इस अदालत को फैसला करने दें
SC ने कहा कि वह सुनवाई कर रहा है और अब 18 अक्टूबर तक बहस होगी. SC ने मध्यस्थता पर टिप्पणी करने से मना किया.
मस्जिदों के डिजाइन का शरिया से कोई लेना देना नहीं ये तो कई बार स्थानीय वास्तु शिल्प और उस जगह के नियम कायदों पर भी निर्भर करता है.
संप्रभु बादशाह के लिए तब कुरान कोई कानून नहीं था. लिहाज़ा कुरान की कसौटी पर बाबर के मस्जिद बनाने को पाप नहीं कह सकते. क्योंकि उस समय राजा के हर कदम और कार्य को शरिया के मुताबिक देखने की ज़रूरत नहीं.
पाशा- कुरान और हदीस के मुताबिक भी कोई कैसे भी मस्जिद बना सकता है. किसी भी ज़मीन पर बिना मीनार और वजूखाना के मस्जिद बनाई जा सकती है.
पहले कभी मन्दिर भी रहा हो वहां भी मस्जिद बनाई जा सकती है.
मस्जिद में कहीं मूर्ति भी हो या दीवारों खंभों में नज़रों में ना आने वाली तस्वीरें या मूर्तियां बनी हों तो भी नमाज़ जायज़ होती है.
मस्जिदों में घण्टियाँ भी इसलिए मना है क्योंकि रसूल को घण्टियों की आवाज़ पसंद नही थी.
इब्ने बतूता ने भी लिखा है कि भारत मे मस्जिदों में भी कई जगह घण्टियाँ थीं.
बाबर पानीपत की लड़ाई जीतने के बाद निज़ामुद्दीन और कुतुब साहब की दरगाह पर गया. ये कहना गलत है कि इस्लाम मे कहीं भी कब्र को मत्था टेकने की इजाज़त नहीं है.
अगर एक बार मस्जिद बन जाए फिर इमारत गिर भी जाए तो वो मस्जिद ही रहती है.
जस्टिस बोबड़े- लगातार नमाज़ की शर्त नहीं है?
पाशा- एक आदमी भी नमाज़ पढ़े तो मस्जिद का अस्तित्व रहेगा.
ये कहना भी गलत है कि मस्जिद में सोना और खाना बनाना मना है. ये सामाजिक और सांस्कृतिक स्थल है। जमात में आने वाले यहां रुकते हैं.
जस्टिस नज़ीर – ये इस्लाम का इंडियन वर्जन है.
मुस्लिम पक्षकारों की दलील पूरी.
अब हिन्दू पक्षकारों की ओर से परासरण ने जवाब/rejoinder शुरू किया.
परासरण- हिन्दू मान्यताओं में परम ईश्वर तो एक ही है लेकिन लोग अलग अलग रूप आकार और मन्दिरों ने उसकी अलग अलग तरह से पूजा-उपासना करते हैं.
हिन्दू उपासना स्थलों के आकार प्रकार और वास्तु विन्यास अलग अलग हैं.
कहीं मूर्तियों के साथ तो कहीं बिना मूर्तियों के. कहीं साकार तो कहीं निराकार रूप में उपासना की पद्धति प्रचलित है.
बस इन विविधताओं के बीच समानता यही है कि लोग दिव्यता या देवता की पूजा करते हैं.
मंदिरों के वास्तु और पूजा पद्धति भी अलग अलग है. आप एक खांचे या फ्रेम में हिन्दू मंदिरों को नहीं बांध सकते!
जस्टिस बोबड़े- मुस्लिम पक्ष की ओर से धवन ने देवता के कानूनी व्यक्ति होने पर सवाल उठाया है. आप इस बाबत क्या कहेंगे देवता की दिव्यता के पहलू पर.
परासरण- हम देवता के बारे में ध्यान करने को हमे कोई आधार चाहिए. ताकि हम अध्यमात्मिक दिव्यता की ओर जा सकें.
परासरन – हम दिव्यता को क्यों मानते हैं?
ये एक जरूरत थी. देवत्व के बिना हिंदु धर्म नहीं हो सकता. ईश्वर एक है यद्यपि रूप भिन्न हो सकते हैं. प्रत्येक मूर्ति का एक अलग रूप है. एक उद्देश्य था. आदमी आधे आदमी और आधे जानवर के रूप में नहीं आ सकताभगवान के लिए इस तरह के रूप में प्रकट करना संभव है. विभिन्न देवताओं की पूजा के विभिन्न रूप हैं. भगवान का रूप क्या है? कोई नहीं जानता. छोटे से छोटा, सबसे बड़ा से बड़ा.
परासरन- उपनिषदों के हवाले से यह तर्क दिया जाता है कि जब भगवान आकारहीन और निराकार होते हैं तो साधारण उपासकों के लिए एक रूप या मूर्ति के अभाव में ईश्वर का अनुभव करना कठिन होता है.
परासरन ने कहा भगवान को अपने लोगों की रक्षा के लिए संरक्षित करना होगा. कोई भी मूर्ति का मालिक नहीं है. इसका विश्वास है जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह कभी पैदा नहीं होता और वह कभी नहीं मरता. उसकी कोई शुरुआत और अंत नहीं है. लोगों को पूजा करने के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए अभिव्यक्ति को बनाए रखने की आवश्यकता थी. दिव्यता के बाद ही मूर्ति पवित्र हो जाती है.
परासरण- मूर्ति स्वयं में कोई कानूनी व्यक्ति नहीं है। लेकिन देवता के रूप में प्राणप्रतिष्ठा और सेवा मान्यता से मूर्ति कानूनी व्यक्ति हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट की ही एक खण्डपीठ ने गुरुवायुर मन्दिर को कानूनी व्यक्ति माना था.
जस्टिस बोबड़े- वहां सिर्फ मूर्ति को मान्यता दी या फिर जमीन सहित मन्दिर को.
कोर्ट ने कहा गुरुवार भोजनावकाश से पहले तक हिन्दू पक्षकार अपनी दलीले खत्म कर लें. निर्मोही अखाड़ा को गुरुवार दोपहर बाद एक घण्टा मिलेगा.
मुस्लिम पक्षकार धवन शुक्रवार सुबह सूट 4 पर बहस शुरू करेंगे.
कोर्ट ने कहा अब सबको अलग अलग सुनने का समय नहीं. आप हमसे वो चीज़ (समय) मांग रहे हो जो हमारे पास है ही नहीं.