Ayodhya Land Dispute Case SC Hearing Day 25 Written Updates: अयोध्या मामले में हुई 25वें दिन की सुनवाई, जानिए मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट, कल भी जारी रहेगी सुनवाई
Ayodhya Land Dispute Case SC Hearing Day 25 Written Updates: अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट रोजाना सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने आज 25वें दिन की सुनवाई शुरू हुई. मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की. राजीव धवन ने पीठ के सामने कहा कि भगवान राम की पवित्रता पर कोई विवाद नहीं है. इसमें भी विवादित नहीं है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में कहीं हुआ था. लेकिन इस तरह की पवित्रता स्थान को एक न्यायिक व्यक्ति में बदलने के लिए पर्याप्त कब होगी ? राजीव धवन ने कहा इसके लिए कैलाश पर्वत जैसी अभिव्यक्ति होनी चाहिए. इसमें विश्वास की निरंतरता होनी चाहिए और यह भी दिखाया जाना चाहिए कि निश्चित रूप से वहीं प्रार्थना की गई थी. बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है.
September 17, 2019 5:31 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago
नई दिल्ली. Ayodhya Land Dispute Case SC Hearing Day 25 Written Updates: अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट रोजाना सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने आज 25वें दिन की सुनवाई शुरू हुई. मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की. राजीव धवन ने पीठ के सामने कहा कि भगवान राम की पवित्रता पर कोई विवाद नहीं है. इसमें भी विवादित नहीं है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में कहीं हुआ था. लेकिन इस तरह की पवित्रता स्थान को एक न्यायिक व्यक्ति में बदलने के लिए पर्याप्त कब होगी ? राजीव धवन ने कहा इसके लिए कैलाश पर्वत जैसी अभिव्यक्ति होनी चाहिए. इसमें विश्वास की निरंतरता होनी चाहिए और यह भी दिखाया जाना चाहिए कि निश्चित रूप से वहीं प्रार्थना की गई थी. बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस संवैधानिक पीठ में जीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस.ए.बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए . नजीर भी शामिल है. यह पूरा विवाद 2.77 एकड़ की जमीन के मालिकाना हक को लेकर है.
इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा तो क्या आप कह रहे हैं कि कुछ शारीरिक अभिव्यक्ति होनी चाहिए ? क्या जगह को व्यक्ति बनाने के लिए मापदंडों को निर्धारित करना बहुत मुश्किल नहीं होगा?
राजीव धवन ने जवाब दिया कोई भी ग्रंथ ये बताने में सक्षम नहीं है कि अयोध्या में किस सटीक स्थान पर भगवान राम का जन्म हुआ था.
कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन से पूछा- भगवान का स्वयंभू होना क्या सामान्य प्रक्रिया है? ये कैसे साबित करेंगे कि राम का जन्म वहीं हुआ या नहीं?
धवन ने कहा कि यही तो मुश्किल है. रामजन्मस्थान का शगूफा तो ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1855 में छोड़ा और हिंदुओं को वहां रामचबूतरा पर पूजा पाठ करने की इजाज़त दी.
धवन ने इकबाल की शायरी का ज़िक्र कर राम को इमामे हिन्द बताते हुए उन पर नाज़ की बात की. लेकिन फिर कहा कि बाद में वो बदल गए थे और पाकिस्तान के समर्थक बन गए थे.
राजीव धवन ने कोर्ट में अल्लामा इक़बाल का मशहूर शेर पढ़ा -“है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़, अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद”.
जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से वो पैरा पढ़ने को कहा जिसमे ये कहा गया था कि हिन्दू जन्मस्थान सिद्ध कर दें तो मुस्लिम पक्ष दावा और ढांचा खुद ही ढहा देंगे.
इसके बाद धवन ने कहा कि घण्टियों के चित्र, मीनार और वजूखाना ना होने से मस्जिद के अस्तित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
जस्टिस बोबड़े ने एक मौलाना का स्टेटमेंट पढ़ने को कहा जिसका क्रॉस एक्जाम नहीं हुआ था। यानी उस मौलाना के हवाले से ढ़ी गई धवन की दलील शून्य हो गई. क्योंकि क्रॉस से पहले ही मौलाना का इंतकाल हो गया था.
कोर्ट ने इमारत में बनी फूल और प्राणियों की आकृतियों पर सवाल पूछा तो धवन ने निर्मोही अखाड़े के लिखित बयान के हवाले से कहा- द्वार को लेकर भी बड़ा विवाद था. 13.12. 1877 में विवादित इमारत की एक बाहरी दीवार में एक दरवाज़ा सिंहद्वार बनाया गया था ताकि दोनों के लिए अलग अलग प्रवेश निकास हों.
विवादित इमारत में आकृतियों के सवाल पर धवन का जवाब-
बाहर रामजन्मस्थान यात्रा का पत्थर लगा है. ये यात्रा 1901 में हुई थी.
उन्होंने 1990 में खींची खंबों की तस्वीर लगाई है.
कसौटी खंबे कहाँ से आए? कुछ कहते हैं नेपाल से आए, कुछ श्री लंका से कुछ कहते हैं वहीं थे.
देवताओं की आकृतियां कहीं नहीं हैं. कमल और फूल तो इस्लामिक आर्ट में भी हर कहीं हैं.
कसौटी खंबे छत को सपोर्ट करने को नहीं बल्कि सजावटी हैं.
सजावटी कलाकृतियों को ही हिन्दू बताया जा रहा है.
जस्टिस बोबड़े- क्या किसी मस्जिद में ऐसी कमल या ऐसी अन्य आकृतियां हैं? क्योंकि हाईकोर्ट ने भी इसको मान्यता दी है.
धवन- कुतुब मीनार के पास की मस्जिद में हैं. हम किसी और जज की मान्यता पर नहीं जा रहे.
उस ज़माने में राजा, सुल्तान, नवाब का कहा ही कानून होता था. गैर कुरानिक कार्य करने वाला राजा भी गैर इस्लामिक माना जाता था.
पश्चिमी दीवार पर न तो कोई आकृति थी और न ही सामने कोई कसौटी खंबा. यानी गैर इसलमिक नमाज़ नहीं हुई.
जस्टिस चन्द्रचूड़- समय के साथ संसकृतिक संगम भी तो होते हैं.
धवन- आपकी ये बात हमारी दलील को मजबूत करती है.
वहां नीचे मन्दिर था ये अलग दलील है लेकिन यहां बहस मन्दिर तोड़ने को लेकर है.
सिर्फ चिह्न मिलने से देवता वहां थे इसकी पुष्टि कैसे होती है?
ये तो इस पर निर्भर करता है कि अंदर प्रार्थना का तरीका कैसा है!
सचाई यही है अंदर मस्जिद और बाहर राम चबूतरा था। अंग्रेजों ने अलग दरवाज़ा बनाकर अमन कायम रखा.
लंच के बाद दोपहर 2 बजे जब मामले की सुनवाई शुरू हुई तब CJI जस्टिस रंजन गोगोई ने सभी पक्षों से पूछा बहस के लिए कितना कितना समय लेंगे ताकि हम अंदाज़ा लगाकर उसी हिसाब से प्लान कर लें कि सुनवाई में कुल कितना वक्त लगेगा.
धवन- मैं पूरी कोशिश करूंगा कि समय से बहस पूरी हो और फैसला आए.
संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे CJI जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अगर एक बार सभी पक्षों कितना समय लेंगे ये बता देते है तो हमें भी पता चल जाएगा कि हमें कितना समय मिलेगा फैसला लिखने के लिए.
मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि वो “इस मामले में फ़ैसला चाहते है”.
जस्टिस भूषण ने पूछा- हनुमान द्वार पर द्वारपाल क्यों बने थे? जय विजय?
19 वीं सदी के उत्तरार्ध 1873-1877 के बीच जब वहां दोनों तरह की प्रार्थनाएं हो रही थीं तब की होंगी.
जस्टिस भूषण- ये तो विष्णु मंदिरों के द्वारपाल होते थे जय विजय. इन जय विजय की मूर्ति वाले कसौटी खंबों का ज़िक्र 1428 में भी मिलता है.
जस्टिस चंद्रचूड़- लेकिन ये खंबों वाली दलील और चित्र मस्जिद के होने या ना होने से नहीं बल्कि वहां हिन्दू पवित्र स्थान होने की तस्दीक करते हैं.
धवन- 14 खंबे चाहे ढहाए गए या या मिले. इससे मन्दिर होने की पुष्टि कैसे? ही सकता है कि मुस्लिम ही कहीं और से लाए हों!
धवन ने कहा कि जिलानी बोलेंगे. जिलानी ने कहा कि हमारी तो ये दलील ही नहीं थी.
धवन- हिन्दू पक्षकारों का दावा है कि मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई क्योंकि कसौटी उसमें पत्थर के खंभे हैं जिनपर हिन्दू देवता बने हैं.
कसौटी खंबे थे भी तो क्या हुआ? वो प्रार्थना स्थल था. क्या फर्क पड़ता है?
तस्वीरों में कुछ बना तो है लेकिन वो यक्ष यक्षिणी हैं या जय विजय. ये साफ नहीं होता.
गवाहों ने किसी भी तस्वीर में कहीं ये पहचान नहीं की कि वे देवी देवता हैं या यक्ष यक्षिणी या फिर जय विजय.
मोर की तस्वीर- हनुमान जी के पास मोर ज़रूर दिखता है.
हाईकोर्ट के फैसले के हवाले से धवन बोले- इमारत के भीतर और बाहर कुछ खंभों में ज़रूर देवी देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं. लेकिन इससे मस्जिद होने पर कोई आपत्ति नहीं जताई गई.
धवन- 30 मुस्लिम गवाहों ने 200 से ज़्यादा चीजें देखकर बयान दर्ज कराया था. हँसबेक की किताब अयोध्या: यात्रियों के यात्रा वृत्तांत रिजेक्ट करने चाहिए.
शिया वक्फ बोर्ड की दलील 13.03. 1946 में खारिज हो गई थी. फैसला आया कि मस्जिद सुन्नी मुसलमानों की थी. इसके बाद शिया बोर्ड ने 2017 तक इस फैसले को चुनौती देते हुए कोई अपील ही नहीं दाखिल की.
पुराने समय मे विष्णु हरि का मन्दिर का हवाला तो दिया गया लेकिन राम की चर्चा नहीं थी. ये मान लिया गया कि विष्णु ही राम थे.
यूपी ज़िला गजेटियर, फैज़ाबाद– उज्जैन के राजा विक्रमादित्य चंद्रगुप्त (द्वितीय) ने अयोध्या को सुरक्षित और संरक्षित किया था. मीर बाकी ताशकन्दी को मस्जिद बनाने को कहा था. लेकिन इसमे काफी झोल है.
1855 और 1885 के बीच दोनों पक्षों में तनाव हुआ.
गजेटियर में भी है कि मुस्लिम अंदर और हिन्दू बाहर उपासना करते थे. मस्जिद को लेकर कोई दिव्य और अलौकिक मान्यता नहीं थी.
राजीव धवन ने चार इतिहासकारों का जिक्र किया जिन्होंने कहा था कि यहां भगवान राम का बर्थ प्लेस साबित नहीं होता.
इतिहासकार एसके सहाय, डीएन झा. सूर्यभान और इरफान हबीब ने संयुक्त रूप से एक से रिपोर्ट बनाई जिसमें कहा गया कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का सबूत नही मिलता और उस जगह पर श्री राम का जन्म हुआ था इसका भी सबूत नही है.
जस्टिस चंद्रचूण ने कहा ये रिपोर्ट वो है जो एएसाई के बिस्तृत रिपोर्ट के पहले की है और जस्टिस अग्रवाल ने इसपर क्रॉस इक्जामिन भी कर लिया है.
धवन ने कहा इस रिपोर्ट पर डीएन झा ने साइन नही किया इसलिए एडमिट नही हुआ.
अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 26 वें दिन मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन पक्ष रखेंगे. बुधवार को सभी पक्षों को कोर्ट में ये बताना है कि उन्हें बहस करने के लिए और कितना समय चाहिए.