लखनऊ. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को गुरुवार को एक बार फिर टाल दिया गया. अब यह सुनवाई 14 मार्च को होगी. इसको लेकर कोर्ट ने तर्क दिया है कि कई किताबों और कागजातों का अनुवाद नहीं किया गया है जिन्हें पूरा करके अब दो हफ्तों में जमा कराना होगा. उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को बीच के विवाद को आज कई दशक बीत चुके हैं लेकिन मामला सुलझने का नाम नहीं ले रहा. इस मजहबी जंग में खूब राजनीति भी हुई और कई लोगों की जानें भी गईं. ऐसे में लंबा समय बीत जाने के कारण कई युवा इस विवाद की असल कहानी से पूरी तरह अंजान हैं. दरअसल ये विवाद 23 दिसंबर 1949 को तब पनपा जब अयोध्या के बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां मिलने की बात सामने आई. इस पर हिंदुओं ने कहा कि वहां भगवान राम प्रकट हुए हैं जबकि मुस्लमानों ने आरोप लगाया कि ये मूर्तियां किसी ने चुपके से मंदिर में रखी हैं. मामले को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस समय यूपी के मुख्यमंत्री रहे जी. बी. पंत से इसपर जल्द से जल्द कार्रवाई करने को कहा जिसके बाद राज्य की सरकार ने य़े मूर्तियां हटाने का आदेश दे दिया. लेकिन जिला मजिस्ट्रेट के. के. नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाएं आहत होने के डर से इस आदेश को पूरा करने में खुद को असमर्थ बताया. बताते चलें कि नायर को कट्टर हिंदुवादी माना जाता था और लोगों का कहना था कि भगवान राम की मूर्तियां रखवाने में उन्हीं की पत्नी शकुंतला नायर का हाथ था.
इतने सब के बाद आखिरकार सरकार ने इसे एक विवादित ढ़ाचा मानकर इसपर ताला लगवा दिया. लेकिन फिर कुछ समय के बाद गोपाल सिंह विशारद नामक एक व्यक्ति ने 16 जनवरी 1950 को फैजाबाद के सिविल जज एन. एन. चंदा के सामने अर्जी देकर यहां पूजा करने की इजाजत मांगी और उन्हें इजाजत मिल भी गई. लेकिन इस पर मुस्लिम समाज ने आपत्ति जताते हुए इसके खिलाफ अर्जी दायर कर दी. साल 1984 में विश्व हिंदु परिषद ने इस जगह पर राम मंदिर के निर्माण के लिए एक कमेटी गठित कर दी. इसके बाद एक अन्य याचिका के मद्देनजर 1 फरवरी 1986 को यहां पर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी गई. तब इस फैसले के विरोध में मुस्लमानों ने बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया.
इसके बाद 06 दिसंबर 1992 को जो हुआ वो इतिहास में दर्ज हो गया. उस दिन वीएचपी, बीजेपी और शिवसेना समेत कई अन्य हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे पर चढ़कर उसको गिरा दिया. इसके बाद कई सांप्रदायिक दंगे हुए. आनन फानन में एक अस्थायी राम मंदिर बना दिया गया. इस पूरे बवाल में लगभग 2000 लोगों ने अपनी जान गवां दी. अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया.
तब से आज तक लगभग 25 साल बीत गए लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ सुनवाई की तारीख बदल रही है और मामले पर कोई हल नहीं निकल रहा. बताते चलें कि बरसों पहले शुरु हुए इस विवाद को मुद्दा बनाकर खूब चुनाव लड़े गए. हर चुनाव से पहले इस मामले को उठाकर फायदा लेने की कोशिशें की गईं.
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