देश-प्रदेश

जब अंतिम दिनों में अचानक ‘नास्तिक’ मोतीलाल नेहरू जपने लगे थे गायत्री मंत्र

नई दिल्ली. पं जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू आमतौर पर नास्तिक प्रकृति के इंगलिशदां थे. कभी लोगों ने उन्हें पूजा पाठ आदि में शामिल होते नहीं देखा था. लेकिन आखिरी वक्त में जब वो अचानक से धार्मिक हो गए तो परिवार का चौंकना लाजिमी था, वो भी महीनों या सालों पहले नहीं बल्कि मौत से कुछ ही दिन पहले. वो अचानक से बार बार गायत्री मंत्र दोहराने लगे. पंडित नेहरू ने उनके मरने के बाद बाकायदा इस पूरी घटना का गांधीजी को लिखे एक खत में उल्लेख किया है.

जब उनको जवाहर ने लगातार गायत्री मंत्र दोहराते देखा तो चौंक गए, मोतीलाल नेहरू भी समझ गए कि जवाहर क्या सोच रहे हैं. तब मोतीलाल नेहरू ने उन्हें बताया कि पिता बचपन में इसे हमें रोज पढ़वाते थे, सो मैं कभी भूला नहीं था. हालांकि उन्होंने इस बात को नहीं बताया कि याद था तो पहले कभी क्यों नहीं पढ़ा. उनकी हालत इतनी नाजुक थी कि जवाहर या परिवार के दोस्त उनसे इस बारे में कोई सवाल भी नहीं कर सकते थे. पंडित नेहरू ने गांधीजी को इस वाकए के बारे में लिखा था, ‘’A very strange thing happened to me, Papa told me last night that he had been taught the Gayatri Mantra in his childhood, but he never cared to repeat it and thought he had forgotten it completely long ago, but that night as he lay in bed it all come back to him and he found himself repeating it.’’.

सो उनके साथ बाकी लोग भी उन अंतिम पलों में गायत्री मंत्र दोहराते रहते थे. गाधीजी मोतीलाल को बड़े भाई की तरह मानते थे. गांधीजी इतनी इज्जत करते थे तो वजह भी थी, एक वकील के तौर पर तो मोतीलाल नेहरू की इज्जत थी ही, मोतीलाल ने अपना काफी बड़ा मकान ‘आनंद भवन’ भी कांग्रेस पार्टी चलाने के लिए इलाहाबाद में दान दे दिया था और उसका नाम स्वराज भवन रख दिया था. उसके बाद वो खुद और उनका बेटा भी कांग्रेस में लगातार सक्रिय रहे थे. गांधीजी से भी मोतीलाल नेहरू के अंतिम दिनों का एक दिलचस्प वाकया जुड़ा है.

उन दिनों में जब गांधीजी मोतीलाल को देखने आए तब मोतीलाल को भयंकर अस्थमा था, किडनी फेल हो चुकी थीं. फिर भी वो गांधीजी को देखकर मुस्कराए. इतना ही नहीं मजाक में मोतीलाल नेहरू ने उनसे कहा कि “अगर हम एक ही दिन मरते हैं, तो मैं आपसे पहले स्वर्ग पहुंचूंगा“ और जब मोतीलाल नेहरू ने गांधीजी को ये बताया कि वो कैसे एक ही दिन मरकर उनसे पहले स्वर्ग पहुंच जाएंगे तो गांधीजी समेत कमरे में मौजूद बाकी लोग भी मुस्कराए बिना रह नहीं सके. जानिए मोतीलाल नेहरू का वो दिलचस्प जवाब, ‘’अगर हमें स्वर्ग तक जाने के लिए मौत की नदी पार करनी प़ड़ी तो आप तो आदत के मुताबिक अकेले चलते चलते आराम से आओगे और मैं मोटर स्पीड बोट से फौरन स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच जाऊंगा.‘’ ऐसे जिंदादिल थे मोतीलाल नेहरू. 6 फरवरी 1931 को उनकी मौत हो गई.

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Aanchal Pandey

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