16 अगस्त का दिन भारत के इतिहास के लिए हमेशा से काला दिन माना जाता रहा है. देश के आजाद होने ठीक एक बाद साल 1946 में जो जिन्ना ने किया था उस करतूत को आज भी नहीं भूल सकते हैं. जो देश के विभाजन जैसी ही वीभत्स थी, करीब 10 हजार लोगों को जिन्ना ने मरवा दिया. लेकिन अब दिन को अटल जी के लिए याद किया जाएगा
नई दिल्ली. 16 अगस्त भारत के इतिहास में हमेशा से ही काला दिन माना जाता रहा है. आजादी से ठीक एक साल पहले यानी 1946 में 16 अगस्त के दिन वो हुआ, जिसे लोग आज तक भुला नहीं पाए हैं. जिन्ना की यही वो करतूत थी, जो देश के विभाजन जैसी ही वीभत्स थी, करीब 10 हजार लोगों को जिन्ना ने मरवा दिया. दरअसल जब केबिनट मिशन के आने के बाद पाकिस्तान के प्रस्ताव पर कांग्रेस के विरोध के चलते जिन्ना की दाल गलती ना लगी तो उसने एक खतरनाक योजना बनाई, जिसे नाम दिया गया ‘डायरेक्शन एक्शन डे’और इसके लिए दिन चुना गया 16 अगस्त 1946.
केबिनेट मिशन के तीनों सदस्य जब भारत आए तो उन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के सदस्यों से अलग अलग मुलाकात की. पहले जब वो कांग्रेस से मिले तो भारत को डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा देने का उनका विचार था, ये बात 16 मई की है, कांग्रेस भी कमोवेश इस पर फौरी तौर पर राजी हो गई थी. लेकिन जिन्ना इसके खिलाफ था, उसने अलग से पाकिस्तान की मांग की और केबिनेट मिशन पर अपने तरीके दवाब बनाया तो केबिनेट मिशन ने एक वैकल्पिक प्रस्ताव भी पेश कर दिया, ये तारीख थी 16 जून की, जिसमें भारत और पाकिस्तान दो डोमिनियन स्टेट्स और रियासतों को स्वतंत्र होने का मौका देने का प्रस्ताव था.
इससे कांग्रेस के नेता भड़क उठे और उन्होंने केबिनट मिशन का ये प्रस्ताव पूरी तरह खारिज हो गया, देश में उस वक्त कांग्रेस लीडिंग पार्टी थी और उसकी रजामंदी के बिना कोई बड़ा फैसला नहीं लिया जा सकता था. ये बात जिन्ना को भी बखूबी पता था, इसलिए जिन्ना ने कांग्रेस को अपनी ताकत दिखाने की सोची. 29 जुलाई को उसने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पाकिस्तान को लेकर अपनी राय और मांग स्पष्ट कर दी, साथ ही हड़ताल का नारा दिया और 16 अगस्त को डायरेक्ट एक्शन या सीधी कार्यवाही दिवस मनाने का ऐलान कर दिया। दावा किया कि उस दिन मुसलमान दिखा देंगे कि वो पाकिस्तान पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.
उन दिनों बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार सुहारावर्दी की अगुवाई में चल रही थी. संयुक्त बंगाल उस वक्त मुस्लिम बाहुल्य जरुर था लेकिन कोलकाता शहर अभी भी हिंदू बहुल था, इसलिए मुस्लिम लीग के सदस्यों की नजर कोलकाता पर थी. कोलकाता के 24 थानों में से 22 में मुस्लिम थानेदारों की नियुक्ति कर दी गई, जबकि बाकी के 2 के थानेदार एंग्लो-इंडियन थे, ऐसे में पूरे कोलकाता महानगर में एक भी थानेदार हिंदू नहीं बचा था. जाहिर है इसी के चलते पूरी दुनियां को इस नरसंहार की खबर 15 दिन बाद मिल सकी थी.
जब 16 अगस्त आया तो मुस्लिम लीग के सदस्यों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया, माना जाता है कि करीब 10 हजार हिंदुओं का कत्ल कर दिया गया, करीब 20 हजार लोग घायल हो गए और हजारों लोगों ने कोलकाता छोड़ दिया। ऐसे तो दंगे देश भर में हुए, लेकिन सबसे ज्यादा असर कोलकाता और बंगाल के बाकी इलाकों में दिखा. इसे डायरेक्ट एक्शन या सीधी कार्यवाही का नाम दिया गया था. सबसे ज्यादा असर पड़ा नोआखली में, गांधीजी को खबर मिली तो वो फौरन दिल्ली से नोआखली आकर शांति प्रयासों में लग गए. महीनों पूरा देश हिंदू मुस्लिम की आग में जलता रहा था, तभी गांधीजी ने एक बारगी जिन्ना को ही संयुक्त भारत का पीएम बनाने का ऑफर तक दे डाला था. अगले 15 अगस्त को भारत आजाद हो गया, फिर भी 16 अगस्त सालों तक सालता रहा, उम्मीद की जा रही है कि आगे से ये दिन अटलजी की पुण्यतिथि के तौर पर ज्यादा जाना जाएगा.