नई दिल्ली. अगर बॉलीवुड कार्ड का किसी के खिलाफ पहला इस्तेमाल इस देश में हुआ होगा तो शायद वो अटल बिहारी बाजपेयी थे। पंडित नेहरू जितना उनको पसंद करते थे, उतने ही इस युवा के तीखे भाषणों को ध्यान से सुनते थे। अटलजी को पसंद करने के बावजूद वो नहीं चाहते थे कि अटलजी सदन में फिर से जीत कर आएं और उसकी वजह थी, अटलजी का जनसंघ के संसदीय दल का नेता होना और पहली बार के ही युवा सांसद को ये जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय ने दी भी इसलिए थी क्योंकि वो प्रखर वक्ता थे और इसी वजह से पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि उनकी सरकार को अपने चुटीले भाषणों के जरिए अक्सर घेरने वाला ये विपक्षी अगली बार लोकसभा में चुनकर आए। तब उन्होंने दो कार्ड इस्तेमाल किए, एक तो महिला कार्ड, दूसरा बॉलीवुड कार्ड।
नेहरूजी जितना अटलजी को पसंद करते थे, उतना वो एक खांटी राजनीतिज्ञ की तरह अटलजी जैसे विपक्षी वक्ता को सदन से बाहर भी करना चाहते थे। ऐसे में 1957 से 1962 तक का पहला कार्यकाल तो अटल जी का कट गया लेकिन दूसरे कार्यकाल में पंडित नेहरू ने चतुर रणनीति से लोकसभा से बाहर करवा दिया। नेहरूजी की हथियार बनीं सुभद्रा जोशी, नेहरूजी की समझ में आ गया था कि अटलजी को फिलहाल किसी मर्द द्वारा पछाड़ना मुमकिन नहीं तो उन्होंने दिल्ली से ऊर्जावान और खूबसूरत सुभद्रा जोशी को उनके खिलाफ बलराम पुर से चुनाव लड़ने के लिए भेजा। सुभद्रा पंजाब से आईं शरणार्थी थीं, एमपी के सागर में हुए 1961 के दंगों में उन्होंने काफी काम किया था। दिल्ली में भी कांग्रेस अध्यक्ष रही थीं। पाकिस्तान के सियालकोट की रहने वाली थीं। हालांकि उनका उत्तर प्रदेश से कोई लेना देना नहीं था, बलरामपुर वो पहली बार गई थीं। लेकिन नेहरूजी को भरोसा था कि अटलजी के मुकाबले भीड़ कोई सुंदर महिला ही जुटा सकती है। लेकिन नेहरूजी ने खाली सुभद्रा जोशी पर ही भरोसा नहीं किया, उन्होंने बलराज साहनी जैसे बड़े फिल्मी अभिनेता से भी सम्पर्क किया और अटलजी के खिलाफ सुभद्रा के हक में चुनाव प्रचार करने का अनुरोध किया।
उस वक्त बलराज साहनी की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ सुपरहिट हुई थी, उनका सितारा बुलंदियों पर था और बलराज साहनी लैफ्ट झुकाव वाले संगठन इप्टा से जुड़े हुए थे, वो जनसंघ के इस जननेता को हराने में मदद के लिए फौरन तैयार हो गए और कई दिन के लिए बलराम पुर में डेरा डाल दिया। तब तक के चुनावी इतिहास में ये पहला मौका था जब उत्तर भारत के किसी चुनाव में कोई फिल्म अभिनेता चुनाव प्रचार करने पहुंचा था। सुभद्रा जोशी ने नेहरूजी से भी गुजारिश की कि आप भी प्रचार करिए लेकिन नेहरूजी जानबूझकर उस सीट पर प्रचार के लिए नहीं आए, एक तरफ दोनों की विदेश नीति में दिलचस्पी होने की वजह से लगाव भी था, दूसरी तरफ वो अटल के खिलाफ प्रचार करके उनका कद और ऊंचा नहीं करना चाहते थे।
लेकिन नेहरूजी का महिला और फिल्मी अभिनेता कार्ड कामयाब रहा, बहुत मामूली अंतर से अटल चुनाव हार गए, सुभद्रा जोशी को कुल 2000 वोट से जीत मिली। लेकिन दीनदयाल उपाध्याय अटलजी को हर हाल में संसद भेजना चाहते थे, तो उसी साल उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाकर भेज दिया और उनका कद बरकरार रखने के लिए फिर से जनसंघ संसदीय दल का नेता बना दिया। इधर सुभद्रा जोशी भी चार बार सांसद रहीं, उनके फिरोज गांधी से अफेयर और सोवियत रुस से फाइनेंशियल हैल्प लेने के चलते भी वो विवादों में रहे। अगले चुनाव तक अटलजी राज्यसभा में रहे, लेकिन अगले चुनावों में वो फिर उसी सीट बलरामपुर से चुनाव लड़े और जीतकर फिर से लोकसभा में आ गए।
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