नई दिल्ली: केरल का कोल्लम जिला धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसी जिले में स्थित है एक ऐसा मंदिर, जो महाभारत के सबसे अहम पात्रों में से एक और पांडवों के दुश्मन शकुनी को समर्पित है। आम तौर पर भारतीय समाज में शकुनी को नकारात्मक किरदार के रूप में देखा जाता है, […]
नई दिल्ली: केरल का कोल्लम जिला धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसी जिले में स्थित है एक ऐसा मंदिर, जो महाभारत के सबसे अहम पात्रों में से एक और पांडवों के दुश्मन शकुनी को समर्पित है। आम तौर पर भारतीय समाज में शकुनी को नकारात्मक किरदार के रूप में देखा जाता है, क्योंकि उसे महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण माना जाता है। लेकिन कोल्लम के पविथ्रेसर मंदिर में भक्त शकुनी की पूजा करते हैं, जो इस क्षेत्र की एक अनूठी परंपरा है।
कोल्लम जिले के पविथ्रेसर में स्थित यह मंदिर प्राचीन समय से शकुनी के भक्तों का केंद्र रहा है। यह मंदिर पुराणों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, उस स्थान पर बनाया गया है जहां शकुनी ने महाभारत के युद्ध से पहले अपना निवास किया था। मंदिर की स्थापत्य शैली और यहां की धार्मिक गतिविधियां केरल की प्राचीन संस्कृति का प्रतीक हैं। इस मंदिर की स्थापना के पीछे यह मान्यता है कि शकुनी केवल एक षड्यंत्रकारी नहीं थे, बल्कि उन्होंने कौरवों की सेना में छिपे षड्यंत्रकारियों का पर्दाफाश करने का प्रयास भी किया था। इस मान्यता के आधार पर यहां के लोग उन्हें एक ज्ञानी और कुशल राजनेता मानते हैं। इस समुदाय ने पवित्रेश्वरम में उसे सम्मानित करने के लिए एक मंदिर का निर्माण किया।
इस मंदिर में हर साल भाद्रपद मास में विशेष पूजा और त्योहार का आयोजन किया जाता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यहां भक्त शकुनी से जीवन की विपत्तियों और बुराइयों से बचाव के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। इस पूजा के दौरान शकुनी की प्रतिमा के सामने दीप जलाए जाते हैं और विशिष्ट अनुष्ठान किए जाते हैं।
भारत के अधिकांश हिस्सों में शकुनी को एक नकारात्मक किरदार के रूप में देखा जाता है, लेकिन कोल्लम के इस मंदिर में उनके प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव है। यहां के लोग मानते हैं कि हर व्यक्ति के कर्म और उसके उद्देश्य के पीछे कुछ कारण होते हैं। इसलिए, शकुनी के चरित्र को एक अलग नजरिए से देखने का प्रयास करते हैं। इस मंदिर का रख-रखाव कुरवा समुदाय करता है।
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