आम आदमी पार्टी (AAP) की ओर से राज्यसभा उम्मीदवार एनडी गुप्ता की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. कांग्रेस ने एनडी गुप्ता को बीजेपी का करीबी बताते हुए उनकी राज्यसभा उम्मीदवारी पर सवालिया निशान लगाया है. उनपर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा है कि सरकार ने उनकी नियुक्ती 1.75 लाख करोड़ रुपए के स्वामित्व वाली नेशनल पेंशन स्कीम ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में की थी और आज भी वह उस पद पर आसीन हैं.
नई दिल्ली. कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के राज्यसभा प्रत्याशी एनडी गुप्ता का नामांकन रद्द करने की मांग की है. दिल्ली के कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने इस संबंध में रिटर्निंगर ऑफिसर के पास लिखित शिकायत दी है. इस शिकायत में माकन ने नारायण दास गुप्ता पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का आरोप लगाते हुए कहा है कि वे साल 2015 में 30 मार्च को 1.75 लाख करोड़ रुपए के स्वामित्व वाली नेशनल पेंशन सिस्टम ट्रस्ट के ट्रस्टी नियुक्त किए गए थे और वे अभी भी इस पद को संभाल रहे हैं. ऐसे में वे राज्यसभा सदस्य नहीं हो सकते और जनप्रतिनिधि कानून के तहत राज्यसभा सीट के लिए उनका नामांकन रद्द किया जाना चाहिए. रिटर्निंग ऑफिसर ने अजय माकन की पहली आपत्ति पर गुप्ता को नोटिस जारी करके 3 बजे तक जवाब मांगा था फिर अजय माकन ने नए प्रमाण भेजे जो लेटर है चैट में, उसके बाद गुप्ता को सोमवार को जवाब देने कहा गया है.
बीते शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि माकन ने दावा किया कि आम आदमी द्वारा राज्यसभा सीट के लिए नामांकित एनडी गुप्ता भाजपा के वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली के नजदीकी हैं और जीएसटी के समर्थक भी हैं. इसके अलावा माकन ने आप के अन्य प्रत्याशी सुशील गुप्ता को लेकर कहा कि वे जनाधार वाले नेता होने की बजाए पैसे वाले नेता हैं.
माकन की इस शिकायत पर आम आदमी पार्टी केप प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा है कि ‘कानून केवल उम्मीदवारों या उसके चुनाव एजेंटों को नामांकनों की जांच के चरण में आपत्तियों को उठाने के लिए निर्धारित करता है. लेकिन माकन की आपत्ति पर न सिर्फ विचार किया जा रहा है बल्कि जांच के समय में भी उसका स्वागत किया जा रहा है. ऐसे में ज्ञान की कमी या दबाव में आकर आरओ ने माकन को सबूत देने के लिए कहा. कानून बहुत ही स्पष्ट है कि नामांकन के समय कौन आपत्तियां दर्ज कर सकता है अब, यदि एक लाख लोग आपत्तियों को दर्ज करते हैं, तो आरओ उन सभी लोगों को व्यक्तिगत सुनवाई देंगे? क्या एक लाख लोग सबूत और बहस करेंगे? क्या यह कभी खत्म न होने वाला सिविल सूट बन जाएगा? नामांकन का निर्णय लेने के बजाय, आरओ ने आदेश को आरक्षित कर दिया है.’