धारा 377: समलैंगिकता अब अपराध नहीं, जानिए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले की दस बड़ी बातें
सुप्रीम कोर्ट ने LGBT यानी लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर के हित में फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता तो अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. इस ऐतिहासिक फैसले की सुनवाई के दौरान जजों ने क्या कहा, इस खबर में जानिए इस फैसले की दस बड़ी बातें...
September 6, 2018 12:47 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया. बीती 17 जुलाई को देश की सर्वोच्च अदालत ने 4 दिन की सुनवाई के बाद इस संबंध में फैसला सुरक्षित रख लिया था. आपको बता दें कि आपसी सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाए जाने को अभी तक धारा 337 के तहत अपराध की श्रेणी में रखा जाता था. इस धारा की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी जिस पर शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. इस खबर में जानिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दस बड़ी बातें…
इस मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि व्यक्तिगत पसंद को पूरी आजादी देनी चाहिए, उन्होंने आगे कहा कि सबको समान अधिकार सुनिश्चित करने की जरूरत है.
जजों ने कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलाव बेहद जरूरी है. जीवन का अधिकार मानवीय अधिकार है इसके बिना बाकी अधिकारों का कोई औचित्य नहीं.
कोर्ट ने आगे कहा कि सेक्शुअल ओरिएंटेशन यानी कि यौन रुझान बॉयोलोजिकल है. इस पर रोक लगाने का मतलब संवैधानिक अधिकारों का हनन है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि हमारी विविधता को स्वीकृति देनी चाहिए और किसी भी निजी च्वाइस का सम्मान करना चाहिए. इसी तरह एलजीबीटी समुदाय के लोगों को भी समान सम्मान का अधिकार है.
राइट को लाइफ एलजीबीटी प्यूपिल का अधिकार है और यह सुनिश्चित करना को कोर्ट का काम है. सुनवाई के दौरान जजों ने कहा कि बालिगों में समलैंगिक संंबंध होना हानिकारक नहीं है.
भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 377 संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौजूदा रूप से सही नहीं है
सीजेआई दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवार्ड चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले सुनवाई शुरू कर 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
बता दें कि धारा 377 के मुताबिक यदि कोई पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है तो यह अपराध माना जाता था.
धारा 377 के अनुसार अगर दो व्यस्क आपसी सहमति से भी समलेैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा.
समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाले धारा 377 के खिलाफ एलजीबीटी समुदाय के लोगों के लिए काम करने वाली नाज फाउंडेशन ने याचिका डाली थी.