विवादों में रही फिल्म पद्मावत के निर्देशक संजय लीला भंसाली को स्वरा भास्कर द्वारा लिखी गई ‘वैजाइना’ (योनि) वाली चिट्ठी के जबाव में पत्रकार सुधीर पांडेय ने भी स्वरा भास्कर के नाम एक पत्र लिखा है. उन्होंने अपने पत्र में अभिनेत्री द्वारा भंसाली पर लगाए आरोपों को निराधार बताया है.
नई दिल्लीः आपकी ‘वैजाइना’ (योनि) वाली चिट्ठी पढ़ी जो आपने ‘पद्मावत’ देखने के बाद संजय लीला भंसाली को लिखी है… आपका ‘योनि’ वाला खत पढ़ने के बाद मैं भी फिल्म देखने गया… फिल्म देखने के बाद आपके पत्र के संदर्भ में जो मुझे लगा वो आपको प्रेषित करता हूं…
आपने लिखा है कि पद्मावत देखने के बाद आपको लगा की आप ‘योनि’ से ज्यादा कुछ नहीं…आपका आरोप है की फिल्म में पद्मावती को सिर्फ उसकी पवित्रता के आसपास केंद्रित रखा गया है…इससे ज्यादा पद्मावती में कुछ नहीं…ये आपने महिलाओं के संदर्भ में कहा है… लेकिन मैं आपके इस आरोप को निराधार मानता हूं… मैं ऐसा क्यों बोल रहा हूं इसे सिलसिलेवार तरीके से फिल्म को आधार बनाकर समझाता हूं… फिल्म को आधार बनाकर इसलिए क्योंकि जाहिर है आपने भी फिल्म देखने के बाद ही टिप्पणी की है… तो इधर उधर की बात ना करके सीधा फिल्म के दृश्यों पर आते हैं…
1- आपको पद्मावत में सिर्फ ‘योनि’ दिखी जबकि आप भूल गई फिल्म के पहले ही दृश्य में जहां पद्मावती की एंट्री होती है… सिंघल देश की राजकुमारी अकेले जंगल में शिकार करने गई थी… वो भी शेर का शिकार… क्या आपको ये शौर्य नहीं दिखता… जंगल में अकेले शेर का शिकार करने गई राजकुमारी का साहस आपको ना दिखा…लेकिन आपको दिखी तो योनि…
2- फिल्म में राजकुमारी पद्मावती ने पिता की सहमति से पहले ही अपना वर चुन लिया था… क्या ये एक राजकुमारी की आधुनिक सोच नहीं थी… जो पिता की सहमति से पहले ही अपना वर चुन चुकी थी… अगर ये अधिकार आज भी सब लड़कियों को मिल जाए तो समाज में कितना सकारात्मक बदलाव हो जाएगा…लेकिन ये आपको ना दिखा… सिंघल देश से हजारों किलोमीटर दूर अपने वर के साथ चित्तौड़ आ जाना… क्या ये पद्मावती का साहस नहीं दर्शाता ?…लेकिन आपको दिखी तो सिर्फ योनि…
3- फिल्म में पद्मावती का सामना जब कुटिल पुरोहित से होता है तो रानी अपने सौंदर्य की जगह बुद्धि को चुनती है… वो पुरोहित के हर सवाल का तर्क से साथ जवाब देती है… आपको पद्मावती की बुद्धि नजर ना आई…उसकी तर्क शक्ति नजर ना आई… नजर आई तो सिर्फ योनि…
4- जब राजा रतन सिंह और पद्मावती एकांत में होते हैं और पुरोहित उनका एकांत भंग करता है तो एक खास संदेश दिया गया… राजा तो पुरोहित को जेल की सजा सुनाते हैं लेकिन पद्मावती के कहने पर उसे देश निकाला दिया जाता है… शायद ही आपने कभी सुना हो किसी राजा ने रानी के कहने पर शाही फैसला बदल दिया लेकिन पद्मावत में ऐसा होता है… फिल्म में राजा रतन सिंह तो एक पल की देरी नहीं करते…राजा के फैसले में रानी की सहमति देखने को मिलती है… बराबरी देखने को मिलती है…. लेकिन आपको दिखी तो सिर्फ योनि…
5-जब राजा रतन सिंह खिलजी को महल में आने की मंजूरी देते हैं तो उसका विरोध सिर्फ और सिर्फ पद्मावती ने किया था… जैसा पद्मावती ने कहा ठीक वैसा ही हुआ… खिलजी ने राजा की शर्त मान ली… पद्मावती की आशंका सच जाहिर हुई… यहां पद्मावती की दूरदर्शिता दिखाई देती है लेकिन आपको दिखी तो सिर्फ योनि…
6- खिलजी जब रानी को देखने की इच्छा जाहिर करता है तो सबका विरोध कर रानी खुद को पेश करने का फैसला लेती हैं… इससे साफ पता चलता है सारे दरबार की राय पर रानी पद्मावती का निर्णय भारी पड़ा … एक रानी की बात सबने सुनी और मानी…. यहां आपको रानी के फैसले की धमक सुनाई ना दी…आपको दिखाई दी तो सिर्फ योनि…
7- जब खिलजी रतन सिंह का अपहरण कर लेता है तो पद्मावती ने गजब की चाल चली… हजारों किलोमीटर दूर से कुटिल पुरोहित का सिर कटवा दिया… ऐसी चाल तो आज के बड़े बड़े नौकरशाह नहीं चल पाते… उस वक्त के बड़े दरबारी बडे वजीर ऐसी बुद्धि नहीं लगा पाते थे… लेकिन आपको पद्मावती की कूटनीति ना दिखी…आपको दिखी तो सिर्फ योनि…
8-खिलजी ने जब राजा रतन सिंह का अपहरण किया तो पद्मावती ने ऐसा फैसला लिया जो इतिहास में ना पहले सुना गया ना बाद में… पद्मावती खुद खिलजी के महल में गईं… वीरता का परिचय देते हुए राजा रतन सिंह को छुड़ा कर वापस लाती हैं… पूरे राज्य में राजा से ज्यादा रानी की जयजयकार होती है…मुझे कोई एक उदाहरण बता दीजिए जहां रानी ने दुश्मन के किले में जाकर राजा को बचाया हो… इतिहास में इतना बड़ा कारनामा करने वाली सिर्फ एक रानी हुई पद्मावती…लेकिन आपको दिखी सिर्फ योनि…
अब फिल्म के सबसे विवादित हिस्से पर आते हैं… जौहर के हिस्से पर… आपने जौहर को आधार बनाकर आरोप लगाया की महिलाओं को जीने का हक है… महिलाएं पति के बगैर भी जिंदा रह सकती हैं… वो आजाद हैं… और बहुत कुछ… आपकी एक-एक बात से मैं हजार-हजार बार सहमत हूं… लेकिन वो आज से 800 साल पहले का समाज था…आज हालात बदल गए हैं… लेकिन यहां मामला कुछ और है… अब वो समझिए…
1- आपने जानबूझकर सती और जौहर को आपस में मिक्स किया… जौहर और सती में अंतर है… ये दोनों ही कुप्रथा थी जो वक्त से साथ खत्म हो गई और कलंक मिट गया…सती पति की मौत पर होता था जबकि जौहर युद्ध में हार के बाद होता था… दोनों ही कुप्रथा थी लेकिन जौहर मजबूरी में की जाती थी… सामूहिक फैसले से होता था… जबकि सती प्रथा समाज और परिवार के दबाव में… दोनों ही पाप थे… अच्छा हुआ बंद हुए…
2- आपने लिखा की पूरी लड़ाई योनि के पीछे हुई… लेकिन आप भूल गई… खिलजी को पद्मावति से प्रेम नहीं था… वो हवस थी…राजा रतन सिंह के पास कोई विकल्प था क्या ? आपको क्या लगता है पद्मावति अगर खिलजी को मिल जाती तो वो सम्मान की जिंदगी जीती…आप क्या ये कहना चाहती हैं की किसी दरिंदे के साथ बिना मर्जी के किसी महिला का रहना आजाद ख्याली है और राजा रतन सिंह को पद्मावति को दुश्मन को सौंप देना चाहिए था….
3- जौहर के हालात को आप जानबूझकर छिपा ले गई… बागों में बहार नहीं आई थी… हजारों आक्रमणकारी महल में प्रवेश कर चुके थे… या तो वो कत्ल करते या इज्जत लूटते… मृत्यु दोनों तरफ थी… मर कर भी मरना था और बचकर भी मरना था… खिलजी और उसकी सेना किसी को छोड़ने वाली नहीं थी… यहां पर राजपूत महिलाओं ने सम्मान के साथ मृत्यु को चुना…क्या उनके पास कोई दूसरा विकल्प था ? जब युद्ध में पारंगत योद्धा ना जीत सके तो खिलजी की विशाल सेना से कुछ महिलाएं कैसे जीत पाती… वो सनी देओल नहीं थी… प्रैक्टिल तरीके से देखेंगी तो खिलजी की दरिंदी सेना उन्हें नोच नोच कर खा जाती… वो खुद आग में कूद गई नहीं तो उनके साथ जानवरों से बदतर सलूक होता… हो सकता है आप उस वक्त कुछ और फैसला लेती…आप खुद को खिलजी के हवाले कर देती… वो आपका मत होता लेकिन राजपूत महिलाओं ने ऐसा नहीं किया… वो उनकी स्वतंत्रता थी… आज देखने में जौहर का वो फैसला रुढिवादी लगता है पर एक बार उस हालात को मद्देनजर रखिए… क्या राजपूत महिलाओं के पास सम्मान से जीने का कोई और विकल्प था…मृत्यु तो राजा की मौत के साथ ही निश्चित हो चुकी थी… क्योंकि 12वीं सदी में लोकतंत्र नहीं था राजशाही थी…इतिहास को इतिहास के नजरिए से देखना चाहिए…आपको हालात छिपाकर अपनी बात नहीं रखनी चाहिए थी…
4- संजय लीला भंसाली का विरोध करना मेरी समझ के परे है क्योंकि उन्होंने जो दिखाया वो लिखा हुआ है… उन्होंने तो अपनी तरफ से इतिहास गढ़ा नहीं… इस हिसाब से तो मुगले आजम से लेकर जोधा अकबर तक हर ऐतिहासिक फिल्म में निर्देशक अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर सकता है लेकिन क्या ये इतिहास के साथ इंसाफ होगा ? आपने तो कुछ फिल्में की हैं…आपको तो मालूम होगा… इतिहास में जो जैसा लिखा है वैसा ही दिखाना होता है… क्योंकि आप उस दौर में नहीं थे… और आज बैठकर 800 साल पहले का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता… इसलिए ट्रिगर दबाने से पहले निशाना तो ठीक से लगा लिया होता…
5- आपने कहा की जौहर का महिमामंडन करने से देश में गलत संदेश जाएगा… अरे वाह.. एक सीरियल आया था बालिका वधू… उस सीरियल के हिट होने के बाद क्या बाल विवाह बढ़ गए थे… आपको क्या लगता है देश दुनिया को समझने की शक्ति सिर्फ आपके पास है…. आप आज के युवा को रील और रिएलिटी का फर्क ना समझाएं… हमको अच्छी तरह से मालूम है की मनोरंजन क्या है… पद्मावत देखने के बाद कोई जौहर या सती ना होगा ना कोई उकसाएगा इससे निश्चिंत रहिए… क्योंकि देश उस दौर से बहुत आगे निकल चुका है… इतिहास को जानना और इतिहास को समझना दो अलग चीजे हैं… आपने दोनों को मिक्स करके कुछ अलग ही परिभाषा गढ़ दी…
आपका प्रशंसक
सुधीर कुमार पाण्डेय
डिसक्लेमरः लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे इनखबर की ना तो सहमति है और ना ही असहमति
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