नई दिल्ली: वर्ल्ड कप सेमीफाइनल मुकाबले के बाद महेंद्र सिंह धोनी एक बार फिर सुर्खियों में हैं. लेकिन इस बार मामला कुछ और है. मामला ये है कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे आम्रपाली होम बायर्स मामले में मंगलवार को फोरेंसिक ऑडिटर्स पवन कुमार अग्रवाल और रविंद्र भाटिया ने सुप्रीम कोर्ट ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि आम्रपाली ने रहिती स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड और आम्रपाली माही डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक फर्जी एग्रीमेंट किया था. धोनी जिन्हें माही के नाम से जाना जाता है उनका रहिती स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्रा. लि. में बड़ा स्टेक है और उनकी पत्नी साक्षी धोनी आम्रपाली माही डेवलपर्स प्रा. लि में निदेशक के पद पर हैं. एम एस धोनी खुद 2016 तक आम्रपाली ग्रुप के ब्रांड एंबेसेडर थे लेकिन होम बायर्स के विरोध के बाद उन्होंने ब्रांड एंबेसेडर पद से इस्तीफा दे दिया था.
धोनी जिन्हें माही के नाम से जाना जाता है उनका रहिती स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्रा. लि. में बड़ा स्टेक है और उनकी पत्नी साक्षी धोनी आम्रपाली माही डेवलपर्स प्रा. लि में निदेशक के पद पर हैं. एम एस धोनी खुद 2016 तक आम्रपाली ग्रुप के ब्रांड एंबेसेडर थे लेकिन होम बायर्स के विरोध के बाद उन्होंने ब्रांड एंबेसेडर पद से इस्तीफा दे दिया था.
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने फॉरेंसिक ऑडिट की रिपोर्ट पढ़ने के बाद टिप्पणी देते हुए कहा कि ‘हमें ये महसूस हो रहा है कि घर खरीदने वाले लोगों का पैसा गैर कानूनी तरीके से रहिती स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्रा. लि. को चला गया और अब वो पैसे वहां से वापस निकालना जरूरी है और जो बात हम कह रहे हैं वो हमारा विचार है जो बाकी के कानून पर लागू नहीं होता है.’
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ही आम्रपाली मामले में अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 42,000 से ज्यादा परेशान फ्लैट खरीदारों को राहत देने के लिए आम्रपाली समूह की रुकी हुई परियोजनाओं को कौन पूरा करेगा. शीर्ष अदालत ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा के अधिकारियों के 10 मई को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखने के बाद कहा था कि उनके पास आम्रपाली समूह की रुकी हुई परियोजनाओं के निर्माण के लिए संसाधन और विशेषज्ञता नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आम्रपाली मामले में सीरियस फ्रॉड हुआ है और बड़ी राशि की हेर-फेर की गई है. इसमें फेमा का उल्लंघन कर विदेशों में धन भेजा गया है. ग्रेटर नोएडा और नोएडा ऑथोरिटी ने भी इस मामले में लापरवाही की है. शीर्ष अदालत ने ईडी को आदेश दिए हैं कि वह फेमा के तहत जांच कर 3 महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट दाखिल करे.
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