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अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर कशमीर तक मची खलबली, इस नेता ने कह दी खूनखराबा की बात

अजमेर शरीफ दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने तीखी टिप्पणी की है. महबूबा ने कहा कि मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाने से खून-खराबा हो सकता है. उन्होंने पूर्व सीजेआई पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी वजह से अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को लेकर विवादास्पद चर्चा शुरू हुई है.

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  • November 28, 2024 7:47 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 month ago

नई दिल्ली: अजमेर शरीफ दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने तीखी टिप्पणी की है. महबूबा ने कहा कि मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाने से खून-खराबा हो सकता है. उन्होंने पूर्व सीजेआई पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी वजह से अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को लेकर विवादास्पद चर्चा शुरू हुई है.

 

तनाव की संभावना बढ़ गई

 

महबूबा ने ‘एक्स’ पर लिखा कि ”सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि 1947 में मौजूद संरचनाओं पर यथास्थिति बनी रहेगी, फिर भी उनके (पूर्व सीजेआई) आदेश ने इन स्थानों के सर्वेक्षण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है जिससे संघर्ष होगा हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव की संभावना बढ़ गई है. वहीं महबूबा का इशारा सीधे तौर पर पूर्व सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ की ओर था जिन्होंने ज्ञानवापी के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की इजाजत दी थी.

महबूबा मुफ्ती ने कहा कि संभल में ताजा हिंसा उसी फैसले का नतीजा है. महबूबा मुफ्ती ने कहा कि पहले मस्जिदों और अब अजमेर शरीफ जैसे मुस्लिम धर्मस्थलों को निशाना बनाया जा रहा है, जिससे खून-खराबा हो सकता है. उन्होंने आगे कहा, ‘सवाल यह है कि बंटवारे के दिनों की याद दिलाने वाली सांप्रदायिक हिंसा की जिम्मेदारी कौन लेगा?

 

गनी लोन ने क्या कहा?

 

पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन ने भी याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा कि प्राथमिकताओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. लोन ने कहा कि जब हम 2025 की ओर बढ़ रहे हैं. जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग है तो यह दुखद है कि समाज पिछड़ेपन का रास्ता चुन रहा है। भारतीयों के रूप में, हमें ईमानदार होने की जरूरत है कि हमने प्रौद्योगिकी क्रांति में कोई योगदान नहीं दिया है।

सज्जाद गनी लोन ने कहा कि देश का ध्यान छिपे हुए मंदिरों को उजागर करने के जुनून की ओर है. वहीं एक बड़ा वर्ग इसकी सराहना भी कर रहा है. जिन पढ़े-लिखे लोगों को तकनीकी क्रांति के लिए आगे आना चाहिए वे मिथक गढ़ने में लगे हुए हैं।

 

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